वैष्णव भक्ति आन्दोलन का अध्ययन | Vaishnav Bhakti Aandolan Ka Aadhyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
60 MB
कुल पष्ठ :
435
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय का सीमा-निर्धारण १५
कारण केवल धर्म का ठेका उच्च वर्ण के अल्पसंख्यकों के हाथ में ही रहा। जब
जैन ओर बौद्ध धमं ब्राह्मण के विरोध में जन-साधा रण के बहुमत को लेकर चलते
थे और फिर जब वे भी आचरण के क्षेत्र में पतित होने लगे तो एक नई स्थिति
उत्पन्न हुई। इसी युग में धामिक क्षेत्र में भागवत धमं को जन-साधारणके लिए
उपयुक्त तथा' धर्म के साधन-पक्ष को स्वंसुलभ और आकर्षक बनाने के साथ ही
व्यापक क्षेत्र में सुधार लाने की मांग हुई । इसी युग की आवश्यकता की पूर्ति के
लिए ही दक्षिण (अर्थात् तमिल-प्रदेश) के आलवार और नायनमा रों ने भविति-
आन्दोलन-रूपी समाज सुधारवादी धार्मिक आन्दोलन आरम्भ किया | आलवारों
ने और नायनमारों ने धर्म के साधन-पक्ष भक्ति-मार्ग को सर्वसुलभ बनाने के
साथही शास्त्र की भक्तिको भावमूलक रूप प्रदान किया। भरवित-भावना के
इतिहास में यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना थी ।
आंदोलन' दाब्द की यथा थंता
आलवारों के द्वारा भक्ति-मार्ग को जो नया रूप दिया गया, उसीको' हमने
'वेष्णव भक्ति-आंदोलन”' का नाम दिया है, और वहीं से वैष्णव भक्ति-आंदोलन
का प्रारम्भ भी माना है । यह 'भक्ति-आंदोलन' शब्द बहुत ही उचित और समी-
चीन भी है। कई विद्वानों ने तथा इतिदहासकारों ने भक्ति के इस नवीन मार्ग को
आंदोलन' (मूवमेंट) या धर्म-सुधार (रिलीजस रिफामं) का नाम दिया है।
अंग्रेज़ी शब्द 'मूवमेंट' का अर्थ है कुछ व्यक्तियों या व्यवित-समू हों द्वारा किसी
विशेष उद्देश्य की उपलब्धि के लिए किया' जाने वाला प्रयत्न । इसके अत्यास्य
अर्थों से भी यह व्यंजित होता है कि किसी विशेष प्रकार की गति-विधि या
क्रियाशीलता से ही इस शब्द का सम्बन्ध है। आन्दोलन शब्द भी लगभग यही
अथ देता है। सुधार' या 'रिफार्मेशन! शब्द के साथ क्रांति' (रेवौल्य्शन ) शब्द
का भी प्रयोग किया जाता है, जो धाभिक गतिविधियों की ओर संकेत करने-
वाला है। बौद्ध-जैन धर्मों के प्रवतेक महात्माओं ने जिस नई धामिक चेतना को
प्रचारित किया, उसे इतिहास में बौद्धिक ऋांति' की संज्ञा दी गई है। आलवार
भक्तों ने वेप्णव्र भक्ति के क्षेत्र मे नवीन् तत्त्वो का समावेश करके भक्ति-मार्ग को'
जो नवीन मोड दिय। था उसको आन्दोलन शब्द से अभिहितं करना ही अधिक
उचित है । 'पुनरुत्थान' या 'पुनर्जागरण' शब्दों से भी आंदोलन” शब्द का अर्थ
निकलता है। परन्तु आंदोलन' शब्द ही कहीं अधिक समीचीन है, क्योंकि धामिक
आन्दोलन अपने को युग की आवश्यकता के अनुसार पूर्व प्रचलित धर्म-पद्धति में
सहिष्णू परिवर्तन एवं परिवद्धंन तक ही सीमित रखता है, जब कि धामिक क्रांति
पुरानी व्यवस्था के प्रति विद्रोह की भावना लेकर आमूल परिवर्तेन के लिए खड़ी
होती है। प्राचीनता और नवीनता में सामंजस्य स्थापित करके चलनेवाली गति-
विधियों को आन्दोलन” और दोनों में किसी प्रकार का प्रत्यक्ष सामंजस्य न
मानकर विरोधात्मक तत्त्वों पर आधारित संगठित प्रयास को क्रांति की कोटि
में रख सकते हैं। परिवर्तन दोनों का लक्ष्य रहता है, परन्तु जहां आन्दोलन! में
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