छन्द प्रभाकर | Chhand Prabhakar

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Chhand Prabhakar  by जगन्नाथ प्रसाद - Jagannath Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ श्रीसरस्वत्येयम! ॥ সি भा भका । ककर म उस सये शक्तिमान जगद एवर को श्ननेक धन्यवाद देते हैं जिसकी = ~ *~ क्ृपाकटात्त से यह छन्दःप्रभाकर नामक पिंगलग्रन्थ निर्मित होकर ४ है ,. प्रकाशित हुआ | २४०८८) চি (१) खब विद्याओं के मूल वेद हैं ओर कुन्दःशासत्र वेदों के छु शः अंगों ( १ कन्द, २ क्प, २३ ज्योतिष, ४ निरुक्त, ५ शित्ता शोर ६ व्याकरण ) में से एक झंग है । यथा-- न्दः पादोन वेदस्य हस्नो कल्पोऽथ कथ्यते । ज्यातिषामप्न नेन्न निसक्तं श्रोत्र मुच्यते ॥ शित्ता घ्राणन्तुञदस्य मुखं व्याकरणंस्मृतम । तस्मात्‌ सांगमध्ीव्येव ब्रह्मलाकेः मीयते ॥ चरगास्थानीय होने के कारण चन्द परम पूजनीय दै, जसे भोतिक सृष्टि में बिना पांव के मनुष्य पंगु है, वसे ही काव्यरूपी खष्टि में बिना छुन्दःशास्त्र के ज्ञान के मनुष्य पंगुबत्‌ हे । बिना छुन्दःशाख्त्र के ज्ञान के न तो कोई काव्य की यथाथ गति समम सकता है न उसे शुद्ध रीति से रचही सकता है | भारतवर्ष म संस्कृत शरोर भाषा के विद्वानों मे कदाचित्‌ ही कोई ऐसा होगा जिसे काव्य पढ़ने का अनुराग न हो, परन्तु बिना छुन्दःशास्त्र के पढ़े किसी को काव्य का यथार्थ ज्ञान एवं बोध होना असंभव है । इसी प्रकार बहुतेरों को काव्य रचने की भी रुचि रहती हे, किन्तु विना छुन्दःशास्त्र के जाने उन्‍्द॑ भी शुद्ध झोर श्रेष्ठ काम्य रचना दुस्तर हे । (२) छुन्दःशास्त्र के कर्त्ता महषि पिगल हैं, उनका रचा हुआ शास्त्र भी पिगल के नाम से प्रसिद्ध है। काष में पिगल शब्द का शञर्थ सप भी है, श्रतणव लोग इन्हें फणि, झ्राहि श्र भुजेगादि नामों से भी स्मरण करते हैं तथा इनको शेषजी का अवतार भी मानते हैं । (३) छुल्दःशास्त्र का थोड़ा बहुत शान होना मनुष्य के लिये परमावश्यक है । प्राप लोग देखते हैँ कि हमारे ऋषि, महि भोर पूषैजों ने स्मरति, शास्म, पुराणादि जितने श्रथ निर्माण क्रिये दै वे सब प्रायः छन्दोषद्ध हँ यहां तक कि গাব গাল वेद भी छुद्स कहाते हैं। छुन्द का इतना गोरव प्मोर माहात्म्य क्यों ? इसका कारण यही है कि कोईभी विषय छुल्दोबद्ध रहने से रमणीयता के कारण शीघ्र कठस्थ हो जाता है ओर पाठकों झोर श्रोताओं दोनों को एक साथदी




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