कालापिनी | Kalaapinii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ 242 कला शत-शत स्वप्ना के चंचल-घन आते वमन~वनकर सम्मोहन अलि ! मेरी पलकों के भीतर कबसरे बसता मधुवन ! सन्ध्या की ज्वाला में घुलमिल आँसू के तारोःसा अनमिल कब अनजाने गूंज उठा अलि ! जीवन का सूनापन £ आज हिलारों का चल-अंचल | साँसों से छू-छूकर प्रतिपल प्रिय के कारण, या अपन ही उर हो उठता उन्मन ? কিক फूला के मन्दिर में अधिकल श রন विरही के दीपक-सी जल-जल पीड़ाएँ क्यो बिखर रही वन-वन सौरभ का स्पन्दन ! अलि ! कलापिनी उतरी जग में में बेठा एकाकी मग में কব ¢ ৯ प्रिय की खुध में, या याही भरता गीतों की गुजन !




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