केंडिडे | Kaindide

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Kaindide by प्रतापनारायण टंडन - Pratapnarayan Tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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केन्डिडे १३ एक ऐसा व्यक्ति, जिसका कोई नामकरण संस्कार नहीं हुआ था, एक उदार नाम वाला व्यक्ति जेम्स, यह सब्च क्र र ओर निंदनीय व्यवहार अपने साथी का देख रहा था--वह दो पैरों ओर एक आत्मा वाले गरीब व्यक्ति केंडिडे को अपने धर ले गया । उसको स्नान कराके उसे भोजन और शराब दी | इसके बाद उसने उसे दो “फ्लोरंस” दिये, और साथ ही उसे परशियन बुनाई के व्यापार की भी शिक्षा दी--जो कि जैसा कि बहुधा हैंड आदि में भी होता है । केंडिडे जेम्स के पैंरों पर गिर पड़ा और निवेदन करने लगा--“मेरा मास्टर पैंग्लास ठीक कहता था । इस संसार में प्रत्येक वस्तु अपने सर्वोत्तम के ट्विए. ही है । ऐसा होता ही है | क्योंकि मैं तुम्हारी उदारता से अधिक प्रमावित हुआ हूँ, उस व्यक्ति की रुखाई की अपेक्षा, जो काला लबादा ओढ़े था, और उसकी पत्नी से |! রবী देग्लास “पॉक्स” पर दूसरे दिन जब केंडिडे घूमने के लिए बाहर जा रह था, उसे रास्ते में एक ऐसा भिखारी दिखाई दिया जो चिथड़ों से ढका हुआ था| उसकी आँखें सिर में धँसी हुईं थीं। उसकी नाक में कुछ रोग था। उसका सह बहुत भोंडा सा था । उसके दाँत काले थे | वह बहुत कंपित स्वर मे बोलता था | उसे खाँसी भी बहुत श्राती थी | खाँसी के प्रत्येक दौर पर ऐसा जान पड़ता था, मानों उसका एक दाँत बाहर गिर पड़ेगा | केैडिडे को इस व्यक्ति पर क्रोध आने को अपेक्षा दया आई । उसने इस भयानक मिखारी को वे दोनों फ्लोरंस दे दिये, जो उसे दूसरी जगह से मिले थे | इसके बाद बह निराश सा हो गया | वह भूत सी छाया उसकी ओर देखते हुए उसके गले से ज्ञिपठ गई | उसकी आंखे आँसओं से भर गई | “अफ़सोत?--- उस गरीब व्यक्ति ने कह “क्या तम अपने रारीब पैंग्लास को नहीं पहचानते १!




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