केंडिडे | Kaindide
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)केन्डिडे १३
एक ऐसा व्यक्ति, जिसका कोई नामकरण संस्कार नहीं हुआ था, एक उदार
नाम वाला व्यक्ति जेम्स, यह सब्च क्र र ओर निंदनीय व्यवहार अपने साथी का देख
रहा था--वह दो पैरों ओर एक आत्मा वाले गरीब व्यक्ति केंडिडे को अपने धर ले
गया । उसको स्नान कराके उसे भोजन और शराब दी | इसके बाद उसने उसे
दो “फ्लोरंस” दिये, और साथ ही उसे परशियन बुनाई के व्यापार की भी शिक्षा
दी--जो कि जैसा कि बहुधा हैंड आदि में भी होता है ।
केंडिडे जेम्स के पैंरों पर गिर पड़ा और निवेदन करने लगा--“मेरा मास्टर
पैंग्लास ठीक कहता था । इस संसार में प्रत्येक वस्तु अपने सर्वोत्तम के ट्विए. ही
है । ऐसा होता ही है | क्योंकि मैं तुम्हारी उदारता से अधिक प्रमावित हुआ हूँ,
उस व्यक्ति की रुखाई की अपेक्षा, जो काला लबादा ओढ़े था, और उसकी
पत्नी से |!
রবী
देग्लास “पॉक्स” पर
दूसरे दिन जब केंडिडे घूमने के लिए बाहर जा रह था, उसे रास्ते में एक
ऐसा भिखारी दिखाई दिया जो चिथड़ों से ढका हुआ था| उसकी आँखें सिर में
धँसी हुईं थीं। उसकी नाक में कुछ रोग था। उसका सह बहुत भोंडा सा था ।
उसके दाँत काले थे | वह बहुत कंपित स्वर मे बोलता था | उसे खाँसी भी बहुत
श्राती थी | खाँसी के प्रत्येक दौर पर ऐसा जान पड़ता था, मानों उसका एक दाँत
बाहर गिर पड़ेगा |
केैडिडे को इस व्यक्ति पर क्रोध आने को अपेक्षा दया आई । उसने इस
भयानक मिखारी को वे दोनों फ्लोरंस दे दिये, जो उसे दूसरी जगह से मिले थे |
इसके बाद बह निराश सा हो गया | वह भूत सी छाया उसकी ओर देखते हुए
उसके गले से ज्ञिपठ गई | उसकी आंखे आँसओं से भर गई | “अफ़सोत?---
उस गरीब व्यक्ति ने कह “क्या तम अपने रारीब पैंग्लास को नहीं पहचानते १!
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