आदि मार्ग चार नाटक | Aadi Marg char Natak
श्रेणी : नाटक/ Drama, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.93 MB
कुल पष्ठ :
231
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मे नाटक कैसे लिखता हूँ केसे खड़ी करता हूँ इस विषय में कोई घडी-घड़ायी विधि ये अस्तुत नहीं कर सकता । बचपन से मेरी प्रवृत्ति नाटकों की ओर रही है बचपन ही से सेने द्विजेन्द्रलाल रॉय आागा हश्र बेताब राधेश्यास दि के नाटक पढ़े है कालेज और कालेज के पश्चात् अनेक नाटकों से अभिनय किया है और जब मे पुस्तकें खरीद सका मैने लगमग सभी प्रति पश्चिमीय और पूर्वीय नाटककारों की रचनाएँ पढ़ी है नाटक के आवश्यक उपादानों का परिचय पाया है पुरातन झ्ोर आधुनिक ढंग के नाटकों का अन्तर जाना है और अभ्यास से डासे की कला पर अधिकार प्राप्त कर लिया है । जब मैंने एफृ० ए० से एक बार एकॉकी लिखने का प्रयास किया तो उस समय सारतवर्ष में एकाकी लगभग अप्राप्य था । कवि टैगोर के एक दो नाटक मेरे सम्मुख थे और पित सुदर्शन की एक कांमरेडी-- दानरेरी मैजिस्ट्रे / किन्तु उस समय मुखे नाटक के विशेषकर शाधघुनिक नाटक के आवश्यक अवयवों का ज्ञान न था इसलिए चेष्टा करने पर थी में सफल नाटक न लिख पांया। कुछ हास्यास्पद नामों के साथ एक हास्याह्पद सी वस्तुस्थिति पर मैंने एक प्रहसन लिखा किन्तु उस समय सी मुखे सन्तोष नहा और बाद में कई बार लिखे जाने पर भी वह इस योग्य न बन सका कि किसी संधट का अंग बने । १५९३६ में मेरी पहली पत्नी का देहान्त हो गया श्र इस श्वचर पर कुछ कुप्रथाश्रों का मेरे मन पर इतना प्रभाव हुआ कि एक दिन जब मैने समय काटने के लिए छोटे साई के कोर्स की एकॉकी नाटकों की पुस्तक उठायी तो पहला चाटक पढ़ते ही एक घटना एकाकी का रूप घार कर मेरे समक्ष आ गयी श्रौर मैंने दो दिन में लिद्मी का स्वागत लिख डाला | कला की दृष्टि से यह श्राज यी मेरे श्रेष्ठ एकाॉँकी नाटकों में से है। उन्हीं दिनो मैंने पुरातन ढंग का एक लम्बा ऐतिहासिक नाटक जिय पराजय लिखा जो बाद में कई विश्वक्धिलयों के पाठ्य-कर्म में सम्मिलित हुआ । इसके पश्चात् ज्यों ज्यों मैं श्राघुनिक नाटक पढ़ता गया मेरे मन में ाघु- निक टढंग के अ्रपेक्ञाकत छोटे नाटक लिखने की इच्छा प्रबलतर होती गयी | कुछ इसलिए मी कि ाजकल जन-साधारण के पास बडे बड़े नाटक देखने या पढ़ने का समय नहीं और कुछ इसलिए कि ये छोटे नाटक श्रधिक सामाविकि लगते हैं अर वास्तविकता का असम उप 0 उत्पन्न कर देते हैं। फिर कहानीकार होने के कारण मुखके छोटे नाटक पसन्द थे । एक रख
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