शिलिमुखी | Silimukhi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सर शिलीसुखी
इन निर्दोग प्रकारों में शास्त्रीय अथवा जातीय कारणों से उसनन हुए
पक्तपातो को समालोचक मै चम्य कना दोगा | जो व्यक्ति शस्त्र के आग्रह
सेदी क्सीवन्नुकतो प्रशंस्व या निद्य ठदराता है वह यथाथ म प्चपत्ता नद)
केबल समय के परिवतन की अपेक्षा से संकरीण दृष्टवाला है, पुराने कठमुल्ला
जब जूता पहने-पहने मेरे मोजन करने पर आाज्षेप करते ह तो मे उन्हें तिक़
पाउट थआफ़ डेट! ही ऋहता हैं। जातीय भावनाओं से प्रेरित होकर मदर
रिव्याः की भारत के प्रत्येक विद्वान ने बुराई की, या समस्त मारवाड़ी-जाति
को विगर्दित ऋरनेवा॥, साहिदरथ के किसी अठारहवे सवार को किसी मारवाड़ी
युवक ने कलकते के भरेाज़ार से जूता मार दिया। जूता मारना विरोधी
समालोचना दी चरियाष्मक पराक्राप्ठा थी | पर किसी ने उन विद्वानों या इस
युवक को पत्ञुपाती नहीं कहा |
बदि देखो तो थे दोनो प्रकार बस्तुतः पत्षणत की श्रेणी में नदीं आने
साहिये। इन्हे पक्तपात इसीलिए कहना पड़ता है कि इनमें कहीं, किसी अंश में
समालोचक के दुराग्रही हो जाने का संशय हो सकता है | शास्त्रीय या जातीय
आम्रह की तीज में यह हो जाना सभव है कि कदाबित् आलोचक की हष्ट
आलोच्य वस्तु के गुणा पर न पढ़े या वह गुण को भी अवगुशो के रूप में
ही देखने लगे तथायि वद्द उन कतिपय या अनेक अवशुर्शे को तो जन-समाज
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के सामने रखता ही है, जिन्हें शायद जन-समाज भी अ्वगुण हो कहेगा, ओर
यदि बह दूसरी बातों को भी ठक के साथ पेश करता है. तो समभदार लोग
उन्हें अपनी सममूदारी की कसतीटी पर कसकर देख सकते हैं ।
जिस धाम्तविक पक्तप्रात कह सकते दें और जो हमेशा निन्ध है, वह केबल
एक हो है। वह जो लेखक और आलोचक के व्यक्तिगत £ ग्बन्ब से उदय होता
« आर ऐसे समालोचक की आलोचना में कृति आर कृतिकार की समालोचना
नही दं।तो, बहिक होता है प्रच्छन्न या प्रकट रूप में व्यक्ति का अनुरोधी या
विरोधी विद्धासन; और उसका उद्देश्य होता है व्यक्तिगत सम्बन्ध की पृष्ट]
पटले प्रकार की ग्रालोचना का उद श्यपूणणु साहित्यिक है, ओर इसी प्रकार
दूसरी का भी, क्यों।क साहित्य को देश या जाति और उसके प्रत्वेक श्रंग का
दर्पण कहा है | पर तीसरे प्रकार की आलोचना का साहित्य से कोई दूर का
भी नाता नहीं हैं और वह अपने रुप ओर उद्देश्य को छिपा भी नहीं सकती।
किसी ने ष्टरि्रोध की बुद़मस”ः लिखा ओर किसी ने श््रोमचन्द की करतूत?
दोनों के नामों में ही उंनके चुग़लज्जोर को पहचान लीजिये।
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