हिन्दू मेघदूत विमर्श | Hindu Meghdut Vimarsh

Hindu Meghdut Vimarsh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेघदूत को टोकाझां का विवरण । दे प्रचार हवा रहा है, येसे वेसे प्रतिदिन इसकी झधिकाधिक पृद्धि हो रदी दे । झस्तु, इस-मेघदूत-की मारे भारतथर्य में भो न मालूम कितनी मेघदूत की टीका्ों .... टीकार्ये प्राचीन विद्वानों द्वारा निर्मित का विवरण फी गई' थीं । दमारा संस्टात-सादित्य यवन+राजकुलाकान्त होने पर झय भी उसमें इस-छोटे से काम्य की यहुतसी टीकाए उपलब्ध द्ोती हैं। उनमें से इस समय तक जितनी सैफाझों का पता मिल सब दे, उनफा चिवरण इस प्रफार हैं * (१) मेघदूत-विद्तिः झयवा पश्चिका ( बटलमदेव छत, मुद्रित ) गे (२) संजीवनी ( मटिलिनाथ कृत, मुद्रित » के दूप्त टीफ़ा की थ्राति मि० डुलक पे ण। 255 साय दे सन्‌ १६११ में लन्डन में श्रर्पन्त भ्रम पूरवेक निकाली है । प्रकाशक मदाशय ने इसके. प्रणेता-वरलमदेव का समय बहुत से मरमार्णों द्वारा इंसवी सन्‌ के दशम- शतक के पूर्व में स्पिर ऊिया है । इस -वस्लमदेव थी लियी हुई रपुबश, घुमारस म्मव शोर शिशुपात्र घघ पर मी टीका दे । पद राजानन्द शानन्द का पुत्र था, इसके पावर कैयट ने थ्ानन्दव्पेनाचाय के देवी-शंतक पर टीका लिप है, जो कि “काव्यमाला” के नवस शुर्छक पत्र ढ-३३ में मुद्रित हुई दे । क॑ इस सु-परसिंद टीका फी सब से प्रथम थाठत्ति सन्‌ १८४६ में बनारस में छपी थो, जेसा कि इन्दिया '्राफिस के संस्कृत पुस्तकों की लायनेरी के शूचों पत्र पे १३४ मैं उतलेख है। तद्नन्तर इसकी भ्रनेक आाहतत्तियों कलफत्ता, पम्चदूं आदि से निकल शघुकी दै। उनमें केवल संस्कृत के पाठफा के लिए परिदत्त इंररचन्द्र विद्यासागर की ( सन्‌ १८६६ में ) तथा पणिडत




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