हिन्दी पद संग्रह | Hindi Pad Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
484
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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है इसलिये सभी हिन्दी कवियों ने विभिन्न राग वाले पदों को अधिक
निबद्ध किया | इनसे इन पदों का इतना अधिक प्रचार हुआ कि कबीर,
मीरा एव सूर के पद् घर घर में गाये जाने क्गे |
' जैन कवियों ने भी हिन्दी में पद रचना करना बहुत पहिले से
प्रारम्भ कर दिया था क्योंकि वैराग्य एवं मक्ति का उपदेश देने में ये पद
बहुत सद्दायक सिद्ध हुये हैं| इसके अतिरिक्त जैन शास्त्र समाओ में शास्त्र
प्रवचन के पश्चात् पद एवं भजन बोलने की प्रथा सैकड़ो वर्षों से चल
रही है इसलिये भी जनता इन पदों की रचना में अत्यधिक रूचि
रखती आरा रही है | राजस्थान के सम्पूर्ण भण्डारों को एवं विशेषत: साग-
वाड़ा, इंडर आदि के शास्त्र भरडारों की पूरी छानबीन न होने के कारण
अमी सच्ससे प्रथम कवि का नाम तो नही लिया जा सकता लेकिन इतना
अ्रवश्य है कि १४ वीं शताब्दी में द्विन्दी पदों की रचना सामान्य बात हो
गई थी । १५ वीं शताब्दी के प्रमुख सन्त सकलकर्ति द्वारा रचित एक
पद देखिये--
तुम बीलमों नेम ज्ञी दोय घटीया
ज।दव वृत्त नब व्याइन आये, उमग्रसेन धी लाइलीया ।
राज्ममती विनती कर बोर, नेम मनाव मानत न दीया ।
राजमती खखीयन सु बले, गीरनार भूधर ध्यान घरीया |
सकलकीत्ति प्रभु दास चर), चरणे ची लमाय रदहीया । 1
सकलकीर्त्ति के पश्चात् ब्रह्म जिनदास के पद भी मिलते हैं।
) आमेर शास्त्र भण्डार गुटका संख्या ३ ~ पत्र संख्या ६३
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