आध्यात्मिक साहचर्य | Aadhyatmik Sahachary
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
61
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ ज्ञानवती दरबार - Dr. Gyanvati Darbar
No Information available about डॉ ज्ञानवती दरबार - Dr. Gyanvati Darbar
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan
No Information available about डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्मिक साहचर्यं
प्रणाली, दरिद्रता, पवित्रता और आज्ञानशीलन--ये सब साधारण
ऐहिक जीवन से ऊपर उठने के मानवीय प्रयत्नों के द्योतक हे । ईसाई धर्म
मे 'कॉस चिन्ह ऐदट्रिय जगत के बन्धनों से मुक्त होने का प्रतीक है । यदि हम
अहूं को त्याग दें तो हमारी प्रकृति देवीशक्ति की प्राप्ति का साधन अथवा
दैवेच्छा का अस्त्र बन जाएगी । यदि हम वास्तव में धर्मनिष्ठ हे तो जहां
और लोग अभिशाप बरसाते हैं हम वरदान देंगे, जहां और घृणा करते
हे हम प्रेम करेगे, जहां ओर निन्दा करते हं हम क्षमा करेगे ओर जहां
ओर लोग रेने को भपटते हं वहां हम देने को उत्सुक होगे । जो ब्रह्म में
निवास करता हँ, वह् “किसीको धोखा नही देगा, किसीसे घणा नहीं
करेगा ओर क्रोधवद किसीकं अहित की इच्छा नही करेगा । प्राणिमात्र
के लिए उसमें असीम प्रेम होगा, जंसे माता को अपने बच्चे के लिए होता
है, जिसकी रक्षा वह अपने प्राण देकर भी करती ह 1“ बद्ध ने ब्रह्म-
विहार का इसी प्रकार वणेन किया हैँ ।
यदि धर्मों में आपसी संघर्ष हे तो उसका कारण यह हैं कि हम
रहस्य से दूर भागते हें और धार्मिक सत्यको बौद्धिक भाषा में
व्यक्त करते हुं । परम सत्य वाक्यों से व्यक्त नही कियाजा सकता।
वास्तव मे हम इसे केवल कल्पनामूक प्रतीका द्वारा ही व्यक्त कर
सकते हं । सिद्धान्तो कं संबंध में विवादो का परिणाम लोगों में उन्माद
और नेताओं में संकीर्ण कट्टरता के उदय के रूप में हुआ हं ! यदि हमें
सत्य के दर्शन करने हे तो सिद्धान्तों से ऊपर उठना होगा और अपने
मानस की गहरी परतों को सूक्ष्मदृष्टि से देखता होगा । धामिक अनु-
भूति के अभाव में धामिक उपकरण सानव कौ धार्मिक पिपासा को
तृप्त नहीं कर सकते । सच्चे धर्म का अर्थ है पूर्ण हृदय से आत्म-सम-
पेंण। भक्ति के समय हम अपने आपको सम्पूर्ण रूप से एक समन्वित के
प्रति किसी पुरस्कार की आशा किये बिना समपित करते हं । धासिक
अनुभूति जुदा करने की बजाय मिलाती है । विछुगता की भावना
इसमे अतिक्रान्त हो जाती है।
नेतिक और सामाजिक प्रगति का आधार हमारे निजी प्रतिकूल
१८
User Reviews
No Reviews | Add Yours...