णाण - सार | Nan - saar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
61
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्न सरी. ६ {.६३. `
अद्धकि सके, ठ ७ ২ বত ০, ক ২২১২২১২০৬২১ ১৩৬৩ तरि ২১-১৯-২১১২
रचना कर पुस्तकाकार , किया क्योंकि ' ऐसा किये विना कान नष्ट
हो जाता 3
ओर भी अनेक आचारयोंने अनेक ग्रन्थ रचे सो भी उतनी
विस्तृत रचना नहीं किन्तु संक्षेपमें साररूपसे द्वादशांगके अनुकूल रचे
इसलिये परिपाटी अपक्षा सवन कथित ही है)
प्रश्ष-अन्थ तो अन्य घमंवालोंके भी हैं वह भी सर्वेज्ञकथित
बताते हैं फिर केसे निणेय किया जाय |
उत्तर-अन्थोकी मिलान करके जो अन्य युक्ति अनुमान प्रत्यक्षसे
बाधित नहीं हो से प्रमाण मानो । निणय बुद्धिसे विचारे तो सांच
झूठ छिपे नहीं, इसप्रकार निणय करो झोर सर्वज्ञकथित ग्रहण करो।
कंदप्पदप्पदकणो उभविहीणो विश्ुकवावारो }
उग्गतव दित्तगत्तो जोई विण्णाय परमत्थो ॥ ४ ॥
कन्दपदपंदलनों | दम्भविद्वीनो विमुक्तव्यापार:
उम्रतपादीक्षगात्र: योगी बिन्नेयः परमाथ: ॥ ४ ||
वौ पार ।
काम गवे दशनेवारे, गत व्यापार कपर इब टके)
खम तपोसे चीरित काया, सो क्ता ज्ञानी मुनिराया ॥ ४॥
अर्थ-कामरहित ज्ञान पूजा कुर जाति पराक्रम वैभव तप शरीर
इन भार प्रकारके मर्दोसे रहित उम्र तर्पोंसे दीक्षिमान शरीरघारी ऐसे
गुरु ही ज्ञानके उपदेशके लिये समथ हैं ।
मावाथै-कामी मानी कपटी रागद्वेषयुक्त गुरु सत्यार्थ उपदेश
नहीं दे सक्ते इसलिये ग्राश्न नहीं |
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