णाण - सार | Nan - saar

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Nan - saar by तिलोक चन्द जैन - Tilok Chand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्न सरी. ६ {.६३. ` अद्धकि सके, ठ ७ ২ বত ০, ক ২২১২২১২০৬২১ ১৩৬৩ तरि ২১-১৯-২১১২ रचना कर पुस्तकाकार , किया क्‍योंकि ' ऐसा किये विना कान नष्ट हो जाता 3 ओर भी अनेक आचारयोंने अनेक ग्रन्थ रचे सो भी उतनी विस्तृत रचना नहीं किन्तु संक्षेपमें साररूपसे द्वादशांगके अनुकूल रचे इसलिये परिपाटी अपक्षा सवन कथित ही है) प्रश्ष-अन्थ तो अन्य घमंवालोंके भी हैं वह भी सर्वेज्ञकथित बताते हैं फिर केसे निणेय किया जाय | उत्तर-अन्थोकी मिलान करके जो अन्य युक्ति अनुमान प्रत्यक्षसे बाधित नहीं हो से प्रमाण मानो । निणय बुद्धिसे विचारे तो सांच झूठ छिपे नहीं, इसप्रकार निणय करो झोर सर्वज्ञकथित ग्रहण करो। कंदप्पदप्पदकणो उभविहीणो विश्ुकवावारो } उग्गतव दित्तगत्तो जोई विण्णाय परमत्थो ॥ ४ ॥ कन्दपदपंदलनों | दम्भविद्वीनो विमुक्तव्यापार: उम्रतपादीक्षगात्र: योगी बिन्नेयः परमाथ: ॥ ४ || वौ पार । काम गवे दशनेवारे, गत व्यापार कपर इब टके) खम तपोसे चीरित काया, सो क्ता ज्ञानी मुनिराया ॥ ४॥ अर्थ-कामरहित ज्ञान पूजा कुर जाति पराक्रम वैभव तप शरीर इन भार प्रकारके मर्दोसे रहित उम्र तर्पोंसे दीक्षिमान शरीरघारी ऐसे गुरु ही ज्ञानके उपदेशके लिये समथ हैं । मावाथै-कामी मानी कपटी रागद्वेषयुक्त गुरु सत्यार्थ उपदेश नहीं दे सक्ते इसलिये ग्राश्न नहीं |




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