देश जिन्दाबाद | Desh Jindabad

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Desh Jindabad by शैलेश पंडित - Shailesh Pandit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरी एक भी कोशिश कारगर सही हुई । और नोटों की एक गड्डी घर में भा गयी । मकान के ब्रूढे चेहरे पर यह ऋणवोध काले धब्बे की तरह उभर गया । और काका एक दीवाली की योजना बना रहे थे, कि वे खेतों से मोती उगाकर बैंक की हथेली पर इस तरह रख देंगे कि पूरा देहात वाह-वाह कह उठेगा। उस शाम, गाँव की चौहद्दी तक चीखता रहा मेरा घर । और बड़े- बढ़े घरों में लेटे हुए भजन गाते रहे । मैने उस चीख को विस्तार देते हुए. कहा, “काका तुमने अच्छा नहीं किया ।”” काका उन क्षणों में दीवार पर लगी हुई, ' मेरी दस साल पुरानी तस्वीर घूरते रहे। और, एक हत्की हंसी फेककर, मेरे चेहरे को लहूलुहान कर दिया । एकाएक मुझे अपनों दस वर्ष पुराना चेहरा याद आया । लगा कि बह मुझसे अलग, कोई दूसरा आदमी था । अगर वह इस वक्त मिल पाये, तो उसे टुकड़े-ट्रकड़े काटकर, चील-कौवों के हवाले कर दूँ । फिर पत्नी की याद आमी । शायद इस तनाव से वहूं स्वयं को अपराधिनी महसुस कर रही हो ! मैं घर के भीतर गया । पत्नी विजय. गर्व से तनी थी । सहसा मैं संयमहदीन हो उठा । नहीं, इस आवेश से ६




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