ग्रामीण समाज | Gramin Samaj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्रामीण समाज १२
जृता खरिदबा दिया! ओरफिर तुम वही जूता पहनकर वेणीकी तरफ
गवाही दे आये { खक् खक् खक् ।
गोविन्दकी आँखें छाल हो आई | उसने पूछा--मैंने गवाही दी १
ध्म०--गवाही नहीं दी १
गो°--चर गा करहीका ।
घर्म०---झूठा होगा तेरा बाप !
गोविन्दने अपना द्ूटा हुआ छाता द्वाथ्में उठा लिया और उछलकर
कहा--अच्छा, तो आ साले !
घर्मदासने अपनी बेंसिक्री छकड़ी ऊपर उठाकर हुँकार किया और तब फिर
खूब जोरोंसे खॉसना शुरू कर दिया । रमेश घबत्राकर दोनोंक़े ब्रीचमें भा खड़े
हुए और स्तंमित हो रहे । धरंदास अपनी लकड़ी नीचे करके खॉसते हुए
ब्रैठ गये जार बोले--मैं रिब्तेमें उस सालेका बढ़ा माई होता हूँ कि नहीं ?
इसीलिए सालेकी अक्विल तो देखो---
गोविन्द गॉयूली भी अपने द्ाथका छाता नीचे रखकर यह कहते हुए बैठ
गये--हैं; यह साछा मेरा बढ़ा भाई है!
अहरके इलवाई अपनी भट्टीका ध्यान छोड़कर यह तमाशा देख रहे ये ¢
चारों तरफ जो लोग काम-धन्घेमें छंगे हुए थे, वे छोग भी यह हो-इल्ा
सुनकर तमामा देखनेके किए. आ पहुँचे | लड़के-बच्चे खेल छोड़कर छड़ाईका
मजा लेने छगे और उन सब्र छोगोके सामने रमेश मारे छजा और आश्वर्यकेः
हत-बुद्धिकी तरंह स्तव्ध होकर चुपचाप खडे रहे । उनके मुँहसे एक बात भी.
न निकली । यह क्या हो रहा है| दोनों ही इृद्ध, मे आदमी और बाह्मण-
सन्तान हैं| ऐसी मामूली-सी बातपर ये छोग नीच जातिके छोगोकी तरह
বাভী-ভীল कर सकते हैं! वरामदेमम बैठे हुए भेरव कपडोंके थाक लगा रहे
ये और ये सब बातें देख और सुन रहे थे । अब वे उठकर वहाँ आ पहुँचे
और रमेशसे कहने छगे--कोई चार सो धोतियों तो हो चुकीं। क्या अभी
ओर धोतियोकी जरूरत होगी ?
लेकिन रमेगके मुँहसे हठात् कोई ब्रात ही न निकली । रमेशका यह
अभिमूत भाव देखकर भैरवको दँसी आ गई। उन्होंने बहुत ही कोमल स्वरसे
समझाते हुए कहा -- छीः गॉगूली महाशय ! बाबू तो ब्रिछकुछ ही अवाक्ू হট
गये हैं | बाबू , आप इन सब वातोंका कुछ खयाल न कीजिएगा। इध तरहकी
भा. २
User Reviews
No Reviews | Add Yours...