ग्रामीण समाज | Gramin Samaj

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Gramin Samaj by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रामीण समाज १२ जृता खरिदबा दिया! ओरफिर तुम वही जूता पहनकर वेणीकी तरफ गवाही दे आये { खक्‌ खक्‌ खक्‌ । गोविन्दकी आँखें छाल हो आई | उसने पूछा--मैंने गवाही दी १ ध्म०--गवाही नहीं दी १ गो°--चर गा करहीका । घर्म०---झूठा होगा तेरा बाप ! गोविन्दने अपना द्ूटा हुआ छाता द्वाथ्में उठा लिया और उछलकर कहा--अच्छा, तो आ साले ! घर्मदासने अपनी बेंसिक्री छकड़ी ऊपर उठाकर हुँकार किया और तब फिर खूब जोरोंसे खॉसना शुरू कर दिया । रमेश घबत्राकर दोनोंक़े ब्रीचमें भा खड़े हुए और स्तंमित हो रहे । धरंदास अपनी लकड़ी नीचे करके खॉसते हुए ब्रैठ गये जार बोले--मैं रिब्तेमें उस सालेका बढ़ा माई होता हूँ कि नहीं ? इसीलिए सालेकी अक्विल तो देखो--- गोविन्द गॉयूली भी अपने द्ाथका छाता नीचे रखकर यह कहते हुए बैठ गये--हैं; यह साछा मेरा बढ़ा भाई है! अहरके इलवाई अपनी भट्टीका ध्यान छोड़कर यह तमाशा देख रहे ये ¢ चारों तरफ जो लोग काम-धन्घेमें छंगे हुए थे, वे छोग भी यह हो-इल्ा सुनकर तमामा देखनेके किए. आ पहुँचे | लड़के-बच्चे खेल छोड़कर छड़ाईका मजा लेने छगे और उन सब्र छोगोके सामने रमेश मारे छजा और आश्वर्यकेः हत-बुद्धिकी तरंह स्तव्ध होकर चुपचाप खडे रहे । उनके मुँहसे एक बात भी. न निकली । यह क्या हो रहा है| दोनों ही इृद्ध, मे आदमी और बाह्मण- सन्तान हैं| ऐसी मामूली-सी बातपर ये छोग नीच जातिके छोगोकी तरह বাভী-ভীল कर सकते हैं! वरामदेमम बैठे हुए भेरव कपडोंके थाक लगा रहे ये और ये सब बातें देख और सुन रहे थे । अब वे उठकर वहाँ आ पहुँचे और रमेशसे कहने छगे--कोई चार सो धोतियों तो हो चुकीं। क्या अभी ओर धोतियोकी जरूरत होगी ? लेकिन रमेगके मुँहसे हठात्‌ कोई ब्रात ही न निकली । रमेशका यह अभिमूत भाव देखकर भैरवको दँसी आ गई। उन्होंने बहुत ही कोमल स्वरसे समझाते हुए कहा -- छीः गॉगूली महाशय ! बाबू तो ब्रिछकुछ ही अवाक्‌ू হট गये हैं | बाबू , आप इन सब वातोंका कुछ खयाल न कीजिएगा। इध तरहकी भा. २




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