मेरी यूरोप यात्रा | Meri Europe Yatra

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Meri Europe Yatra by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankratyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरी यूरोप यौत्रा ही मालूम हुई। हों पहले दिन अपरिचित हीनेके कारण कि व्यजीव-सा सालम हुआ था । दोपहरका खाना फिर हमारे कैबिन- सें ही आया । आनन्द्जीका भूख ही न थी कहनेपर ासके दो पवार टुकड़े खाये । मेने तो गोश्त अण्डा मछली रोटी मक्खन जो कुछ आया था बेखटके पेट भर खाया । पश्चात्‌ थोड़ी देर विस्तरेपर पड़ रहा । इसके बाद चीनी प्रोफेसर ल्यूके पास गया 1 बेचारे सवेरेसे ही विस्तरेपर पढ़े थे । यह सज्जन लड़कपनमे ही विद्याम्यासके लिये अमेरिका भेज दिये गये थे । इधर कई वर्षो- तक मुकदन संचूरिया के चीनी विश्वविद्यालयसें इतिहास और संस्कतके अध्यापक थे। एक साल पूर्व जापानने मंचूरियापर पूर्ण-रूपेश॒ कब्जा जमा लिया तब यद्द॒ विश्वविद्यालय भी बन्द हो गया । श्रोफेसर ल्यु इधर अन्ताराष्ट्रीय संघ ट्वारा नियुक्त मंचूरिया कमीशनके चीनी सद्स्यके विशेषज्ञ परामशंदाता रहे । छाव यूरोप और अमेरिकाकी यात्रापर निकले है। शासकों मैंने बड़े ्याग्रहपूबंक ताजी नारंगीका रस पीनेका दिया साथ ही चूसनेके लिये अद्रख नीवू भी । तीसरे दिनसे मैंने अपने जहाज दा--तंस-नॉकी खबर लेनी शुरू की । यह फ्रांसीसी जहदाजी कम्पनी मेसाजिरी-मारी-तीमूके ए श्रेणीके बड़े जहाजोमें दै। इसकी लम्बाई ५४१ फीट चोड़ाई ६४५ फीट वजन १४ १०४ टन ओर इंजिन दस दजार घोड़ोंकी ताकतकों है । यात्रियोके रहनेके वी सी छी ई चार तल हैं जिनमें बी तल सिफं तीसरे दुर्जेके यात्रियोके लिये दै और डी ई




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