बाजीराव पेशवा | Bajirav Peswa

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Bajirav Peswa by रामनिवास शर्मा - Ramnivas Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह ता उनका बढप्पत है । वे हमार पूजनीय हैं ।” चिटदिस की प्रोर देखता हुआ क्रोध म मरकर बाजोराव बोला- “यह ख गोता भ्रमी दा प्रभी महाराज छत्रसाल के पास मिजवाधा शोर हस्कारे के साथ बहलवाओा कि मैं आ्रापकी सवा मे हाजिर हो रहा ह-” हरकार को शोर হন कहा- इसकं झाराम को व्यवस्था करो 1” हरकारा मुजरा घरता हुपा पीछे चला औ्लौर तम्बू सं बाहर निकल गया | बिटनिस ने खरीत का गाय कर लाह वी मुगलौमे डालकर कोथली मे ब द क्या मोहर लगाकर महाराज छत्रप्ताल के पास पहुचान का झ्रादेश थोड रूमथ तक बाजी राव ऊहापोह मे रहा फिर निश्चिय कर कहा- श्रता को लिखा कि इदौर मे ठहरने स काम नहीं चलगा । मैं प्रुदेलखण्ड जा रहा हू । मेरे से सम्पक रखें झौर पीछे रहन का प्रयास करे ।' विटनिष न खोता तयार करक पड़त चिमनाजो प्रप्य को मिजवाने की व्यवस्वा करत । पडत बाजीराव उठ कर तस्त्र म घूमने लगा। रशमीशाल वा वार कध से फिसलकर नीचे भ्ाने लगा ! कानो की बालियो के मोती व नाल चमक्‍त जा रह थे। जसे सात्विक विचारों मे कछोध की रेखा का मिश्रण हो । परो मं गो क खाल को मोचडी चू चरमर चू चरमर कर रहो थो । पेशवा क भ्रस्थिर विचारों को सूचक थी । जलाट पर पसीन को बू दें छाने लगी । श्रिपुण्ड कही कही से गोला हाते लगा। जस गरजते हुए बादल फुप्रार विखेर रहे हो । बाजीराव थोड समय तक भस्थिर विचारा को घूम धूम कर स्थिरता का जामा पहनाकर वाप बठक! पर बठता हुग्ना बोला सरदारा को बुलाझो । चिटनिस के ताली बजाते ही द्वारपाल हाजिर हुआ और मुजरा करन लगा ॥ चिटनिस का भ्रादेश सुनकर खड परो ही वापस बाहर गया प्रोर पिलाजो जावव, नारो स्कर, तुको पवार मल्हार राव होल्कर को बैलाने के लिए हरकारा को भेजा ।




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