मीमांसार्य्यभाष्य | meemansaryyabhashy
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
51 MB
कुल पष्ठ :
814
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ३
सकूता है ओर ईश्वर का खण्डन किसी सूत्र ते निकार सकूता है,
कदापि नहीं, सम्पूर्ण দীমালান্হীন में एकभी सूत्र ऐसा नहीं
जिसमें जीवात्मा को सर्वव्यापक माना हो अथवा जिसमे ईश्वर
का खण्डन किया हो, शाख्रदीपिकाकार ने यह भाव कुमारिलभट्ट
से लिया है ।
यद्यपि कुमारिलभट्ट की इस अंश में हमारे हृदय में अत्यन्त
श्रद्धा है कि उन्होंने वेदिकथम के लिये अपने शरीर को भी
अर्पण कर दिया परन्तु इस भाव से हम उनके अवैदिक भावों
को जो उन्होंने ईश्वर के कपृैत का खण्डन और जीवात्मा को
विभु माना है नहीं मान सकृते, इस भूल का कारण मूलमृत्रों का
वैदिक दृष्टि से अनभ्यास है और स्वार्थ इस प्रकार है कि जब
मन चाहा कि मांसभक्षण तथा मद्यपान करें तो इन टीकाकारों ने
पशुयज्ञ तथा सोत्रामण आदि इस प्रकार के स्वार्थपधान यज्ञ
मीमांसा में भरदिये जिनमें मांस तथा मद्य का विधान उनके लेख
से स्पष्ट पाया जाता है ।
ओर जो यह आशक्षेप था कि तुम पुराने टीकाकारों को
आधुनिक केसे कहते हो, क्योंकि वह तुम से प्रथम हैं ! इसका
उत्तर यह है कि हम उनको वैदिकधर्म की अपेक्षा से आधुनिक
कहते है अपनी अपेक्षा मे नहीं ओर अपने आपको वेदिक तथा
प्राचीन इसलिये कहसक्ते हैं कि सूत्रों के अर्थ हम सर्वदा बेदिक-
प्रथा तथा प्राचीनशैक्ली के अनुसार करते हैं आधुनिक टीकाकारों
की भांति कपोल कल्पित नहीं, हम हृढ़ प्रतिज्ञापूपैक कहसक्ते दै
कि हमारा अर्थ सत्रों तथा बेदिक सम्प्रदाय से किश्विन्मात्र भी
ब्िपरीत नहीं है परन्तु आधुनिक टीकाकारों का मन्तव्य तथा मृत्रार्थ
सर्वथा त्रिपरीत है, देखिये महर्पिजेमिनि महर्षैव्यास के सर्वप्रधान
User Reviews
No Reviews | Add Yours...