नये प्रतिनिधि कवि (प्रथम भाग) | Naye Pratinidhi Kavi (pratham Bhag)

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Naye Pratinidhi Kavi (pratham Bhag) by हरिचरण शर्मा - Haricharan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तथा काव्य : एक परिदृश्य / 5 हैं, अपितु विचारों की सघनता में भी इबना चाहते हँ । नया कवि भी अपनी अनुभू- तियो की संप्र बणीयता के लिए एक भी ऐसा शब्द खरचने के लिए तैयार नहीदं जो फालत्‌ कहा जाए । प्रभाव हृदय पर पड़े या मस्तिष्क पर, एक ही शब्द में वह गक्ति हो सकती है जो उसके स्थान पर रखे गये अनेक शब्दों से भी सम्भव नहीं है । कथ्य की नवीनता का असर सभो नये कवियों में पाया जाता है। परिणामतः नयी जीवन दृष्टि, नये मानव-मुल्य और नये संदर्भों को नए घरातल पर देखा जा सकता है । पुराने कवियों की चेतता परिधि में वह सब नहीं समा सकता था जो नये कवियों की चेतना का जल वन कर नये काग्प में प्रवाहित हुआ है । नये कवियों ने अ्रतुभूतियों की वर्गीकृत और सीमित सीमा की लॉँघकर अपने अंतरंग और भोगे हुये उन अ्रसीमित व श्रर्निडिष्ट क्षेत्रों में प्रवेश किया है जिनकी ओर न तो पहले के कवियों में देखने की गक्ति थी और न साहस ही + राज हम देखते हैं कि छोटी से छोटी अनुभूतियाँ और वर्ज्य भावनाएँ विराट बिम्बों और प्रतीकों के सहारे अभिव्यक्ति पा रही हैं क्योंकि ग्राज ये अनुभूतियाँ और प्रतिक्रियाएँ अधिक सार्थक और मुल्यवान लगती हैं--उन्की तुलना में जो प्रसाधारण या अलौकिक थीं । कहने की आवश्यकता नहीं कि पहले के कर्तियों का वन्तु क्षेत्र एक सीमा में बँधा हुप्रा था । वे जीवन और जगत की मोटी- मोटी बातों को लेकर ही कविता की इमारत खड़ी किया करते थे--वही सुख-दुख, ग्राद्या-निराशा, आत्मा-परमात्मा, भौतिक और ग्राध्यात्मिक तत्व ही कविता में आ्राकार पाते थे । इनके अलावा और भी कोई सुक्ष्प से सूक्ष्म प्रनुभूतियों का स्तर है । यह वे या तो जानते नहीं थे या जानकर भी जानना नहीं चाहते थे । नये काव्य में इन्हें आकार प्राप्त हुआ है और यही कारण है कि नये कवि की अनुभूतियाँ सामान्‍्यी- कृत भी हैं और विशेषीकृत भी । प्रश्त उठता है कि नये कवि की अ्रभिधा किन-किन कवियों को प्राप्त है । सामान्य श्रथे में वे सभी कवि नये हैं जो स्वातंत्र्योन्तर काल में उभरकर आये हैं,: किन्‍्तू नयापन कालसापेक्ष नहीं है । उसमें समय से जुड़े रहने के साथ-साथ दृष्टिकोण की नवीनता और शिल्पगत नवीनता का समंजस्य भी अनिवाय है। भाव, संवेदना, दृष्टि और शिल्प के धरातल पर जो कवि रेखांकित करने योग्य हैं या श्रपनी काव्य- साधना से अपने युग की समस्त विश्वेषता्रों के वाहक हैं, उनमें अ्ज्ञेय, नागाजु न, मुक्तिबोध, शमशेर, गिरिजाकुमार माथुर, धर्मवीर भारती, सर्वेश्वर, नरेश मेहता, दुष्यन्त, कू वरनारायण, जगदीश गुप्त ग्रौर लक्ष्मीकांत वर्मा आदि के नाम प्रमुख हैं । इन सभी कवियों की प्रगतिशील दृष्टि से जिस काव्य का निर्माण हुआ है;वह न केवल युग की संवेदनाग्रों का प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत करता दै । म्रपितु जन-जीवन ্সীহ व्यक्त के अन्तर्जगत का भूगोल भी प्रस्तुत करता है; भाव और शिल्प के क्षेत्र में इत सभो ने पर्याप्त प्रतिबद्धता और सजगता से काम लिया है । एक प्रकार से ये वे कवि हैं जो नये काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस सूची को और भी बढ़ाया जा सकता है, {कन्तु इनका कृतित्व नएु काश्य की प्रमुख प्रवृत्तियों को समने मे काफो सहायक है; इसमें विकल्‍प नहीं ।




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