अक्षरों का आरम्भ और भाषा विज्ञान | Aksharon Ka Arambh Aur Bhasha Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9
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से पेदा हुए थे। मगर यह प्रश्न कि ऐसा मनुष्य कब पेदा हुआ
था और वह वास्तव में मनुष्य की खरत-शक््ल रखता था,
ऐसा कठिन है कि उसका कोई विशेष उचर नहीं मिल सकता ।
पहले-पहल दुश्मनो से बचने के लिए लोग किनारे से
हटकर नदियों में पानी के ऊपर कोंपड़े बनाकर रहते भे |
हीरोगलीफी' शिला-लैखों से--जो दुनिया के बहुत पुराने
लेख के नमूने हैं--यह पता चलता हे कि दुनिया ३,०००
ই০ पू० से भी पहले बनी थी। उस समय अधिक जंगली
होने के बावजूद भी, उन लोगों की बोली ओर आवाज के
सारभूत तत्त वही थे जो किसी सभ्य बोली के होते हैं।
अन्तर केवल बारीकी और सफाई में था। उनके द्वारा
हथियार, ओजार और रोज-रोज की जरूरी चीजे, जेसे हथौड़ा
बसला, बरछी, चाकू, हाथ से बटा हुआ धागा ओर जाल
इत्यादि, उस समय भी उपयोग में लाए जाते थे । अन्तर सिषं
उनकी मोंडी बनावट ओर खरत मे था। मॉस का भूनना,
उबालना, चमड़ा पकाना, चटाइयों का बनाना, जानवरों और
मछलियो का शिकार खेलना, जेवरों का पहनना ओर ओंपड़ो
को फूल-पत्ती से सजाना, यह सब वे भी इसी तरह करते थे
जैसे हम करते हैं । अन्तर केवल हमारी और उनकी चीजों में
अच्छाई और सफाई का था। धीरे-धीरे, बहुत समय बीतने के
बाद, खेती-बाड़ी और बरतन-भांडे' बनाने की कारीगरी मालूम
हुई; और अन्त में, आवश्यकता होने पर स्थिति और दशा,
विचार ओर मनोभाव को संग्रहीत करने के लिए लेखर-कला की
कल्पना हुई, लेकिन सबसे पहले केवल चित्र ही लिखे जाते थे ।
मनुष्य उस समय तक सुखी रहता हे जब तक उसके
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