विदिशा-वैभव | Vidisha Vaibhav

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Vidisha Vaibhav by राजमल जैन - Rajmal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रेष्टि ने पुष्पह्ार भेंट में प्रथम मिलन में सगाई के वक्त प्रदान किया था। इस कारण से इसका নাম गुलगाँव रखा गया था। लड़की को एरन देने से ग्राम एरन और सिर पर टीका देने से सिरचम्पा और रत्न संचयपुर ( साची ) पर भगवान नेमिनाथ का समवशरण भाने से उस स्मृति में राज्याश्रप द्वारा आचाये परम्परा के अनुसार जो दरबाजों पर मूर्तियाँ चारों ओर उत्कीरित हैं वह भगवान नेमिनाथ के जीवन की चरित्रावलि है। भगवान नेमिनाथ का वंश परिचय, यहां आने का कारण, सम्राट अशोक की ससुराल में पढ़िये। रायसेन का संक्षिप्त इतिहास-- यह रायसेन विदिशा से दक्षिण दिशा में है। यह भोपाल राजधानी का एक जिला है ॥ यहाँ से चारों दिशाओं में मोटरों के लिये पक्की सड़कें बनी हैं-(१) सागर (२) बरेली (३) विदिशा साची (४) भोपाल को मागे है। रायसेन में ३ किला हैं। इसके पश्चचमी पहाड़ी पर भगवान राम के चरण एक चद्टान में उत्कीरित हैं। किवदन्ती है कि भगवान राम बनवास के समय यहां आये और शयन किया था। इस कारण से इस नगर का नाम रामशयन से रायसेन हुआ । इस किले में प्राचीन खंडहर हैं। दर्शनीय स्थान बारह दरी, इत्रदान, बाहर महल डोहला और एक मस्जिद है जोकि पूर्व में जैन मन्दिर था जिसे मुगल राज्य में मत्जिद बना लिया गया, उसमें जैन मश्दिर के प्रमाणस्वरूप बेदी बनी है। और शिलालेख भी साक्षी दे रहे है। इस किले से उत्तर की ओर पहाड़ी है जिसपर एक बड़ी भारी गुफा है। किवदल्ती है कि यहां बाल्मीक ऋषि रहते थे । उन्हें उनके गुद का आदेश था कि सीता के पुत्र तुम्हारी कुटी में ज्म रगे ओर तुम उन्हें अपनी धनुविद्या सिखाना । कालांतर में सीता का राम के द्वारा वनवास हुआ और सीता जी बराई खास नामक स्थान पर कृताध्तवक्र सेनापति के द्वारा छोड़ी गई। इसी के निकट राजा नल ने दमयंती को सोता छोड़ा था। यह स्थान आज भी राजा नल की पहाड़ी के नाम से विख्यात है। इन पहाड़ियों के बीच में लोहे की कीट के बड़े बड़े ढेर लगे हैं। इससे यह भी जान पड़ता है कि पूवंकाल में यहां लोहे का उत्पादन भी रहा है। रायसेन से पूरे की ओर रामगढ़- जामगढ़ आदि स्थान भी हैं। रामगढ़ में देवों ने अयोध्या नगरी बसाई थी। और उस नगरी में राम, लक्ष्मण, सीता ने वनवाप्त के समय कुछ समय निवास किया था। ( पश्चातु ) वीरपुर वन्ठोड़ मे बांस भिडे है जहां शंबुक खरदूषण का पत्र चन्द्रहास खडग सिद्ध कर रहा था। लक्ष्मण वहां गये और वहाँ देवोपनीत चष्दरहास खड्ग लटकती देखी, लक्ष्मण ने हाथ बढ़ाया | वह हाथ में आते ही उन्होंने अनजाने में वह खड़ग उसी बांसभिड़े पर मार दो, बाँपभिड़ा কত হাতা और उसमें बेठा शंबुक भी मारा गया।




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