दौलत विलास | Daulat Vilas

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Daulat Vilas by वीरसागर जैन - Veersagar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“जय श्री वीर जिनेन्द्र चन्द्रे शत इन्द्र वन्य नगतारं ॥ सिद्धारथ-कुल-कमल अमल रवि, भव-भूधर पवि भारं । गुन-मनि-कोष अदोष मोखपति, विपिन-कषाय-तुषारं ॥' (पट 2९) इसी प्रकार निम्नलिखित पक्तियाँ भी देखिए, जिनमे एक-दो पदों को छोड़कर शेष सभी शब्द तत्सम शब्द है! तत्सम ही नही, समास-युक्त भी रै, जिनका अर्थं साधरण पाठक सरलता से नहीं समझ सकता- “जगदानन्दन जिन अभिनन्दन, पद-अरविन्द नम मैं तेरे ॥ अरुन वरन अघ-ताप हरन वर, वितरन-कुशल सु सरन बडे रे। पदयासदने मदन-मद-भजन, रजन मुनिजन-मन-अलि के रे॥ (पद?) परन्तु इसका अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि 'दौलत-विलास' की भाषा सर्वत्र ऐसी ही क्लिष्ट व तन्‍्सम शब्दावली से युक्त है, क्योंकि अधिकांश स्थलों पर तो वह अत्यन्त कोमल, मधुर एव सरल-सुबोध ही है। उदाहरणार्थ यह पद देखिए जो पूरा का पूरा ही कोमलकान्त पदावली से युक्त एवं सरल-सुबोध है- “छॉडि दे या बुधि भोरी, वृथा तन से रति जोरी॥ यह पर है, न रहै थिर पोषत, सकल कुमल की झोरी। यासों ममता करि अनादि से, बैँधो करम की डोरी। . सहै दुख-जलधि हिलोरी ॥ ये जड़ है तू चेतन यो ही, अपनावत बरजोरी। सम्यग्दशन-ज्ञान-चरन निधि, ये है सम्पति तोरी। सदा विलसो शिवगारी ॥ सुखिया भये सदीव जीव जिन, यासो ममता तोरी। 'दील' सीख यह लीजे पीजे, ज्ञान-पियूष कटोरी। मिटे परचाह कठोरी ॥” (पद 108) बहरहाल, 'दीलत-विलास' की भाषा अत्यन्त प्रवाहमय है और उसमें भावों को अभिव्यक्त करने की अन्यधिक सामर्थ्य पाई जाती है। लोकोक्ति-मुहावरे--'दौलत-विलास” की भाषा मे स्थान-स्थान पर लोकोक्ति-मुहावरों का भी उचित प्रयोग हुआ है जिससे रोचकता व हदयग्राह्यता तो उत्पन्न हुई ही है, उसकं अभिव्यक्ति-सामर्ध्यं मे भी विशेष अभिवृद्धि हुई दै! उदाहरणार्थ, कतिपय निम्नोदूधृत काव्य-पंक्तियां देखिए-- (क) ज्ञान विसार विषय-रस चाखत, सुस्तरु जारि कनक बोवत हो। (पद 106) (ख) शर्म चै न लहै शट ज्यो घुत्त हेतु बिलोबत पानी। (पद 95) 16 . दौलत-विलास




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