दौलत विलास पद संग्रह | Daulat Vilas Pad Sangrah

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Daulat Vilas Pad Sangrah by वीरसागर जैन - Veersagar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“जय श्री वीर जिनेन्द्र चन्द्र शत इन्द्र वन्य नगतारं ॥ सिद्धारथ-कुल-कमल अमल रवि, भव-भूधर पवि भारं । गुन-मनि-कोष अदोष मोखपति, विपिन-कषाय-तुषारं ॥' (पद 920 इसी प्रकार निम्नलिखित पक्तियाँ भी देखिए, जिनमे एक-दो पदों को छोड़कर शेष सभी शब्द तत्सम शब्द है! तत्सम ही नही, समास-युक्त भी रै, जिनका अर्थं साधरण पाठक सरलता से नहीं समझ सकता- “'जगदानन्दन जिन अभिनन्दन, पद-अरविन्द नर्मू मैं तेरे ॥ अरुन वरन अघ-ताप हरन वर, वितरन-कुशल सु सरन बडे रे। पसासदन मदन-मद-भजन, रजन मुनिजन-मन-अलि के रे ॥”. (पद 7) परन्तु इसका अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि 'दौलत-विलास' की भाषा सर्वत्र ऐसी ही क्लिष्ट व तन्सम शब्दावली से युक्त है, क्योंकि अधिकांश स्थलो पर तौ वह अत्यन्त कोमल, मधुर एव सरल-सुबोध ही है। उदाहरणार्थ यह पद देखिए जो पूरा का पूरा ही कोमलकान्त पदावली से युक्त एव सरल-सुबोध है- छॉडि दे या बुधि भोरी, वृथा तन से रति जौरी॥ यह पर है, न रहे धिर पोषत, सकल कमल की डरी । यासौ ममता करि अनादि से, बधो करम की डोरी। . सहै दृख-जलधि हिलोरी ॥ ये जड़ है तू चेतन यो ही, अपनावत बरजोरी। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरन निधि, ये है सम्पति तोरी। सदा विलसो शिवगारी ॥ सुखिया भये सदीव जीव जिन, यासो ममता तोरी। 'दौल' सीख यह लीजे पीजे, ज्ञान-पियूष कटोरी । मिरे परचाह कटोरी ॥ (पद 108) बहरहाल, 'दौलत-विलास' की भाषा अत्यन्त प्रवाहमय है और उसमें भावों को अभिव्यक्त करने की अत्यधिक सामर्थ्यं पाई जाती है। लोकोक्ति-मुहावरे-'दौलत-विलास' की भाषा मे स्थान-स्थान पर लोकोक्ति-मुहावरों का भी उचित प्रयोग हुआ है जिससे रोचकता व हदयग्राह्यता तो उत्पन्न हुई ही है, उसकं अभिव्यक्ति-सामर्ध्यं मे भी विशेष अभिवृद्धि हुई दै! उदाहरणार्थ, कतिपय निम्नोदूधूत काव्य-पंक्तियां देखिए- (क) ज्ञान विसार विषय-रस चाखत, सुरतरु जारि कनक बोवत हो। (पद 106) (ख) शर्म चहै न लहे शठ ज्यों घृत हेतु बिलोवत पानी। (पद 95) 16 *. दौलत-विलास




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