जाट इतिहास | Jat Itihas

Jat Itihas by ठाकुर देशराज - Thakur Deshraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मैंने जाद इतिदास का एक वड़ा हिस्सा पढ़ा है । जाट-जाति के उद्धच पर ऐसा योग्यता-पूर्ण विस्तृत-विचार मैंने दूसरी जगद्द नहीं देखा । जो लोग यूरोपियन विद्वानों के मत को ईश्वरीय घाकय समझ कर जाटों राजपूर्तो और गूजर्यो को म्लेच्छों का चंशज मानने लगे हैं उनके मस्तिप्कों के लिए यदद पुस्तक एफ का फाम देगी । लेखक का मत है कि ज्ञाट थार्य हैं । प्रसिद्ध भारतीय इतिहास लेखक श्रीयुत वैद्य ने श्वपने मध्यफा- लीन इतिदास में फर्नल टाड की इस कल्पना का श्कास्य युक्तियों से खणइन फर दिया था कि राजपूत जाट श्रादि ऊततियों का जन्म सिथियन हण श्ादि म्लेच्छ जातियों से । जाट इतिदास फे लेखक ने मि० चैद्य फा ्मुसरणु फिया है श्रीर ्रसाघारण परिश्रम द्वारा पाठकों को फरा दिया है कि धीर जातियों को श्ना्य्य फेचल पाश्चात्य विद्वानों की भारतीय श्रार्य-जाति के प्रति तिरस्फार युक्त भावना फा फल है । जाट शप्द फी उत्पत्ति फे सम्बन्ध में लेखक ने निम्न लिखित सिद्धान्तों की रुथापना की हैं। यद् चंशर श्रीरुप्ण के समय में दो विभागों में विमक्त हो गया । मांग था दूसरा पएकतन्घ्रन्चादी । झप्ण प्रजातन्त्र-्यादी थे । प्रजातन्त्र-यादियों फा छूप्ण फे नेतृत्व में जो संघ स्थापित हुझ्ा पा घाति नाम से पुकाण जाता था । जाट शम्द की उत्पत्ति घाति शप्द से ही एई है। ज्ञाट स्पभाय से प्रजातन्य-याद फे पक्षपानी हैं। लेखफ फी यदद कल्पना पयपि नरयीन प्रतीत होती हैं परन्तु मारम्भ में सभी पर्पनायें नपीन होती हैं चौर में सममता हूं. कि ज्ञाट-शप्द के उद्धय के सम्पस्थ में अप सपा सो भी कल्पनायं हुई हैं उनमें से फिसी से भी यह था फम सम्नप नहीं है। न




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