शुभदा | Shubhda
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७
इस तरह की वात मुंह से न निकलने दूंगी ।
धास्तव में ललता ते बुआ को इतनी तीखी वात कह अनुचित कार्य
किया था। उसकी माता ने कहा--/बिदिया, अब तुम बड़ी हो गई हो
अुम्हें सोच-समझक़र हर एक बात मूँह से मिकालनी चाहिए 1
इस तरह की बातचीत के बाद पुत्री और ननद के आग्रह करने पर
ललना की माता ने कुछ खाना ख़ाया । उसके बाद हो अपनी पाँच वर्ष की
कन्या प्रमिला की अगली पकड़े हुए विन्ध्यवासिनी ने हाराण बाबू के घर
में प्रवेश किया ।
सामने ही रासमणि खड़ी हुई थी । विन्ध्यवासिती की ओर चष्ट
जाते ही उन्होंने कहा--'विन्दों तो भाई, अब इस ओर कभी दिखाई ही
नही देती ।!
विन््दों दवने वाली स्त्री नहीं थी। हँसकर वह भी झट वीज उठी--
तुम्ही कां रोज खडी रहती हो दीदी ?'
“मुझे क्था घर से पैर निकालने का अवसर मिलता है बहन ? छोटे
लडके की बीमारी के कारण एक क्षण के लिए भी निकलने का समय नहीं
मिलता 1
“उसे क्या हुआ है ?!
बुखार दै, तिल्ली बद् गई है, पेट मे न जने क्या-क्या रोग हो गयेहै ?
उसे कोई रोग होने को वाकी नही है।
हू कहाँ गई ?!
“अभी ही उन्होंने जरा-सा खाया है, उसकमरे में लड़के के पास जाकर
बंठी है 1
'खाने में इतनी देर कर दी है ?”
'हाराण की राह देख रही थीं। वह तीन दिन से घर नहीं आया।
उन्होने सोचा कि सम्भव है आता ही हो । इसीलिये खाने में उन्हें इतनी
देरी होगई।
विन्दो वह् सकी नहीं । दह सीधे उस कमरे मे गई, जिसमें बहू,
গা छोटे लड़के माधव के सिरहाने बैठी हुईं उसे कहानी सुना
रही थी 1
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