हमारी शिक्षा | Humari Shiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
44 MB
कुल पष्ठ :
367
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)৫ हमारी शिक्षा
और बन्दर दो ही वर्ग ऐसे हैं जिनके हाथों कौ प्रत्येक गरली सरलता पूवक
अँगूठे से मिलाई और हटाई जा सकती है । इसका प्रभाव यह पड़ा कि हम
যা किसी वस्तु को अत्यन्त दृढ़ता से पकड़ सकते हैँं। पक्षियों के चंगुलों
में भी पर्यात दृढता होती है पर वे दो ही हँ---चाहे उन्हें हाथ माना जाय,
चाहे पेर | एक बात में हम लोग बन्दरों से भी आगे बढ़ गये थे वह है
हँसने और मुस्कराने की शक्ति। रोना तो बहुत से जानवरों में भी पाया
जाता है--पर हँसना नहीं । क् द
हमारी इन कायिक विशेषताओं से अन्य जानवरों पर आरम्म में विजय
पाने में हमें बड़ी सहायता मिली। हाथों में स्वाभाविक दृद्ता हने के
कारण अपने से बलवान पशुश्रों को पछाड़ने में हम अख्न-शस्त्रों का सुविधा
पूर्वक प्रयोग करते थे। महीन से महीन ओर छोटी से छोटी वस्तुश्नों को
हम उठा सकते थे | हमारे संकेत अत्यन्त सूक्ष्म और स्पष्ट होते थे | हँसने ओर
मुस्कराने की शक्ति से हमें अत्यधिक सुविधाएं मिलीं। आरम्म में भाषा
का श्रभाव तो था ही परन्तु श्रपनी आकृतियों से हम अन्य जानवरों की
अपेक्षा अधिकाधिक भाव-अ्रकाशन कर सकते थे | इसमें सन्देह नहीं कि प्रकृति
अथवा परमात्मा ने हममें बुद्धि और प्रतिमा भी अधिक दी है परन्तु इसका
प्रत्यक्ष प्रमाण हमें कम मिलता है| प्रयत्न और अ्रभ्यासके फल्लस्वरूप बहुत
से जानवर भी अनोखे ओर अद्भुत कार्य कर डालते हैं ।
मानव सभ्यता के विकास में जल? का 'बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है ।
वायु तो प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध है पर जल के लिए प्रायः प्रयत्न करने
पड़ते थे। आरम्म मे मनुष्य मी जानवरों की माति शुर्ड में बेटकर रहते थे
आ्रोर अधिक समय तक थे वहीं रहते थे जहाँ कि उन्हें जल की सुविधा
मिलती थी । उस देश तथा स्थान को वे विशेष महत्व देते थे जहाँ पर उन्हें
प्रत्येक ऋतु में पर्याप्त जल मिलता था| यही कारण है कि संसार का प्राचीन
इतिहास केवल चार बड़ी नदियों की घाटियों का इतिहास हैः---[अ) सिन्ध-
गङ्गा की घाटी ( भारतवर्ष ) (ब) नील नदी की घाटी ( मिश्र देश );
(स) दजला-फरात की घाटी ( वर्तमान ईराक, आदि ) और (द) ह्ांगहो
की घाटी ( चीन )1 इन नदियों की घाटियों म॑ लोग स्थाई रूप से इसी लिए
बस गये कि उन्हें वर्ष भर पीने तथा अ्रन्न उपजाने के लिए जल मिलता था ।
इन घाटियों को सम्यता तथा संस्कृति, यद्यपि इनकी बहुत सी बातें
मिलती-जुलती थीं, समान रूप से विकसित नहीं हुई | जहाँ का जल जितना
शुद्ध, स्वस्थ तथा उपयोगी था वहाँ के लोग उतने ही तृप्त, सन्तुष्ट तथा
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