शरणागत | Sharanagat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
123
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वृन्दावनलाल वर्मा -Vrindavanlal Varma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शरणागत
41
रज्जब ने कमर की गांठ को एक हाथ से सँभालते हुये बहुत ही
विनम्र स्वर में कहा, 'मैं बहुत गरीब आदमी हूँ। मेरे पास कुछ नहीं
है। मेरी औरत गाड़ी में बीमार पड़ी है। मुरभे जाने दीजिये ।'
उन में से एक ने रज्जब के सिर पर लाठी उबारी ।
गाडीवान खिसकना चाहता था कि दूसरे ने उसे पकड़ लिया । तब
उसका मँह खुला । बोला, 'महाराज, मुझको छोड़ दो । मै तो किराये
पर गाड़ी लिये जा रहा हूं । गांठ में खाने के लिये तीन-चार आने पैसे
ही हैं ।'
'और यह कौन है ? बतला ।' उन लोगों में से एक ने पूछा । गाड़ी-
वान ने तुरन्त उत्तर दिया, 'ललितपुर का एक कसाई ।'
रज्जब के सिर पर जो लाठी उबारी गई थी, बह वहीं रह गई ।
लाठी वाले के मह से निकला, 'तुम कसाई हो ? सच बतलाओ ॥'
हां महाराज रज्जव ने सहसा उत्तर दिया, “मैं बहुत गरीब हूँ ।
हाथ जोड़ता हूँ, मुझको मत सताओञ्ो | मेरी औरत बहुत बीमार है !'
ग्रौरत जोर से कराही ।
लाठी वाले उस झादमी ने अपने एक साथी से कान में कहा, “इसका
नाम रज्जब है छोड़ो । चलें यहां से ।'
उसने न माना ' बोला, इसका खोपड़ा चकनाचूर करो, दाऊजू,
यदि ऐसे न माने तो । श्रसाई-कसाई हम कुछ नहीं मानते ।'
'छोड़ना ही पडेगा ।” उसने कहा, 'इस पर हाथ नहीं पसारेंगे और
न पंसा ही छुयेगे ।'
दूसरा बोला, 'क्या कसाईं होने से ? दाऊज़ू, आज तुम्हारी बुद्धि पर
पत्थर पड़ गये हैं--मैं देखता हूं । श्रीर तुरन्त लाठी लेकर गाड़ी मे चढ़
गया । लाठी का एक सिर रज्जब को छाती में भ्रड़ाकर उसने तुरन्त रुपया
पसा निकालकर देने का हुक्म दिया । नीचे खडे हुये उस व्यक्ति ने जरा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...