कवि दृष्टि | Kavi - Drishti

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Kavi - Drishti by अज्ञेय - Agyey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिकाओं की भूमिका | १७ जायेंगे कि एक तो गीत होता है जिसमें छन्द, तुक, ताल, लय सब कद्ध कां विचार होता है (गौर जो इसलिए एकं घटिया कान्य-ल्प है), गौर दुसरे बाघु- निक कवितां होती है जो मुक्त छन्द मे होती है, अर्थात्‌ उसमे इन सब चीजों भं से किसी का विचार नहीं होता और यति का निर्णय मी बिलकुल स्वैर ल्प से किया जाता है! ऐसे बहुत से कवि निराला और मुक्तिबोघ की दहाई भी देंगे, उन्हीं की परम्परा--वहीं, उनकी प्रुम्परा में होने का नहीं, बल्कि उनकी विरासत के हकदार होने का दावा भी करंगे । यह ठीक है कि गीत आज की कविता की সুভ धारा नहीं है, न हो सकठी है । मख्य धारा वह्‌ कमी नहीं थी गौर संसार के किसी मी काव्य के इतिहास मे कमी नहीं हुई । काव्य-सर्जना की वह एक छोटी उपधास ही रही है । ऐसा हुआ हो सकता है कि किसी काल मे गीत अथवा पद कुं अधिक लिखे गये हों; ऐसा भी हो सकता है कि किसी समय में या किसी धारा में कुछ कवियों ने मुख्यतया गीत ही लिखे हों (उदाहरणतया, छायादादी धारा में महादेवी वर्मा ने) । लेकिन किसी भी समय या किसी भी धारा का समग्न मूल्यांकन उसके गीतों के आधार पर नहीं हुआ है । पर इसका कारण यह नहीं रहा है कि गीतों में छुन्द, तुक, ताल आदि के बन्ध जुयादा कड़ाई से माने गये हैं । बल्कि ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं जिनमें इससे ठीक उलटी बात लक्षित हो, यानी वर्णों और मात्राओं की ग्रिवती के मामले में गीत अपने समय के काव्य की अपेक्षा कद्टीं अधिक स्वछन्द दीखे। यह स्वामा- विक भी है क्योंकि गीत अथवा पद में गेयता का सी विचार रहता है और इस- लिए उसे संगीत के क्षेत्र से भी एकं वरह की स्वाधीना मिल जाती है । कविताई की दुष्ट से वह वर्णो गौर मात्राओं की गिनती की उपेक्षा भी कर सकता और करता रहा-अगर वह्‌ इस कमी की पूति के .लएु संगीत के बन्धन का निर्वाह करता रह सका । लेकिन गीत का विचार यहाँ विस्तार से करने की कोई आव- श्यकता नीं है; इमे छन्द-मुक्ति को, क्तताः ओर उरूके आभ्यन्तर नियन्त्रण की ही बात करनी है। निराला ने छन्द के नन्व तोड़े; निराला को वियद्‌ प्रतिसा की अवज्ञा किये बिना भी यह कहा जा सकता है कि कद्दीं-कद्ठीं उनका विद्रोह छुन्द को तोड़ कर ही रह गया और उसके बदले कोई दूसरा जनुशासन उन्हें प्राप्त नहीं हुआ । जहाँ वह अनुशासन है, वहां तो उनके मक्त छन्द की शक्ति भी विभोर कर देनेवाली है, लेकिन जहाँ नहीं है वहाँ हमें वस्तु अथवा कथ्य की ओर ध्यान दे कर ही जाना पडता है । मुक्तिबोध में छुन्द को समझ अपेक्षया कम लक्षित होती है । फिर मुक्तिबोध को वह सुविधा भी नहीं थी जो निराला को सर्वदा उपलब्ध थी क्योकि निराला संगीत जानते थे और लय का भाव पैदा




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