आलोचना समुच्चय | Aalochana Samuchchaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)সে
महात्मा कत्रीर
में नहीं आता। इसके अतिरिक्ति, ठकुर-सुद्दाती,.फ़हकर संम्रदाग्रों को
मिलाने के यत्न की कोई भी संभावना हम खरी खरी कहने वाले
कबीर साहब में नहीं देखते । अल्यथा उनके चरित्र में एक दूसरे
के विरोधी दो तत्ततों को एक साथ रखकर हम उनके चरित्र को
बहुत नीचा गिरा दंगे।
' अआद्वेत-ज्ञान के सिलसिले मे कबीर साहब मे माया के सस्बन्ध
में भी कह्दा है। इस मांया ने सब को चशीभूत कर रखा है--अश्ा,
विष], महेश तक इसके प्रभाव से नहीं बच सके । यह देखने में
मीठी लगती है ओर सबको >म में फँसा, कर हरि तक नहीं
पहुँचने देती । जितने भी कर्म आदिक हैं--आवाणसन ओर
दशावतार तक--सब माया ही हैं।' यह माया बड़ी ठगिलीहै।
कामिती ओर कांचन इसके दो साधन हैं--
(क) माया दीपक नर-पर्तँँग, श्रमि भ्मि माहि परुंत ।
(ख) संत्ती आवे-जाय सो भाया।
(ग) दस अवतार ईस्वरी माया करता के जिन पूजा ।
(घ) माया महा ठगिनी धम जानी 1-
निरयुन फोस लिए कर डाले बोले, मधुरी बानी ।
केसव के कमला हः केटी, सिन के भवन भवानी ।
पंडा फे मूरति ह वैठो, तीरथ मेँ सई पान ।
जोगी के जोगिन है बैठी, राजाके धूर राजी।
काह के टीरा ह बैठी, काह के कौड़ी कानी।
मह्न .के भनि हं बैंठी,_ब्रह्मा के दानी. ।
@) एक क एक् कमनी, दुग वाटी दोय ।
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