आलोचना समुच्चय | Aalochana Samuchchaya

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Aalochana Samuchchaya by रामकृष्ण शुक्ल - Ramkrishna Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সে महात्मा कत्रीर में नहीं आता। इसके अतिरिक्ति, ठकुर-सुद्दाती,.फ़हकर संम्रदाग्रों को मिलाने के यत्न की कोई भी संभावना हम खरी खरी कहने वाले कबीर साहब में नहीं देखते । अल्यथा उनके चरित्र में एक दूसरे के विरोधी दो तत्ततों को एक साथ रखकर हम उनके चरित्र को बहुत नीचा गिरा दंगे। ' अआद्वेत-ज्ञान के सिलसिले मे कबीर साहब मे माया के सस्बन्ध में भी कह्दा है। इस मांया ने सब को चशीभूत कर रखा है--अश्ा, विष], महेश तक इसके प्रभाव से नहीं बच सके । यह देखने में मीठी लगती है ओर सबको >म में फँसा, कर हरि तक नहीं पहुँचने देती । जितने भी कर्म आदिक हैं--आवाणसन ओर दशावतार तक--सब माया ही हैं।' यह माया बड़ी ठगिलीहै। कामिती ओर कांचन इसके दो साधन हैं-- (क) माया दीपक नर-पर्तँँग, श्रमि भ्मि माहि परुंत । (ख) संत्ती आवे-जाय सो भाया। (ग) दस अवतार ईस्वरी माया करता के जिन पूजा । (घ) माया महा ठगिनी धम जानी 1- निरयुन फोस लिए कर डाले बोले, मधुरी बानी । केसव के कमला हः केटी, सिन के भवन भवानी । पंडा फे मूरति ह वैठो, तीरथ मेँ सई पान । जोगी के जोगिन है बैठी, राजाके धूर राजी। काह के टीरा ह बैठी, काह के कौड़ी कानी। मह्न .के भनि हं बैंठी,_ब्रह्मा के दानी. । @) एक क एक्‌ कमनी, दुग वाटी दोय । 4




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