मेरा कमरा | Mera Kamra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.27 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मोटे अक्षरा में सजा ली थी. हाय छिंदीए रुत है बहार की 1 उस महीने छिदी का पिता किराया लेने भाया तो उम्र वी शरारत जसे वोल उसके माथे से टकराये और उसने बाद में जल्दी हो हमसे कमरा खाली करवा लिया । तब यह खयाल तक भी नही था वि. बह कमरा दोस्ती के कमल फूल वी नीव वन गया है । सुना है कई कमरे प्रेमिका की काया के समान भी होते है और गन व रता है कच्ची शराब बनकर सिर वो चढ़े रहें हाते होंगे । पर मुके तो यह मालूम है कि अधिकतर कमरे उस औरत के अक्लेपन के समान होते हैं जो परना होती है 1 मुझे ता बहुत से कमरे उस अजनवी औरत की तरह ही मिले हैं जिसका साथ सासो की मजबूरी होती है । गाघी आश्रम मे मेरा बैरक जैसा कमरा ने प्रेमिका की काया के समान था और न ही पत्नी के अकेलेपन के समान था । मेरा बह कमरा गिरगिट बे समान था---मित रग बदल लेता था। उन दिनों मैं आश्रम का पत्रिका भूदान का. तोस रुपये मासिक का सम्पादक था ओर आश्रम की चारदीवारी से बाहर आने के लिये पढाई भी कर रहा था । सदा की भाति हमारा दिन तडके चार बजे शुरू हा जाता था। गाधी चर्खा हाथ म लिये आश्रम के संव गाधीवादी ठड से ठिटुरते हुए बापू खटीर पहुच जाते थे 1 प्राथता स्थल वी ठडी वंजरी पर बठ कर गाधी चखें पर तार कातते हुय हम प्राथना के दाव्द ऊचे स्वर से गाते थे उठ जाग सुसाफ्रि भोर मई अब रन वहा जा सोवत है । एक दिन प्राथना से तौटे ता कमरों को तलाशी हो चुकी श्ण्हू
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