आगम युग का जैन दर्शन | Aagam yug Ka Jain Darshan

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Aagam yug Ka Jain Darshan by दलसुख मालवनिया - Dalsukh Malvania

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ [१] प्रमेयनिरूपण .१-- तत्त्व, अथं, पदां, तत्त्वाथं २--सत्‌ का स्वरूप ३--द्रव्य, पर्याय गौर गुण का लक्षण ४-- गुणं गौर पर्याय से द्रन्य वियुक्त नहीं भ--कालद्रन्य ६--पुद्गलद्रव्य ७--इन्द्रियनिरूपर. ८--अमूतं द्रव्यो की एकत्रावगाहना [२] प्रमाणनिरूपण १- पंच ज्ञान ओौर प्रमाणो का समन्वय २--प्रत्यक्ष-परोक्ष ३--प्रभाणसंख्यान्तर का विचार ४-- प्रमाण का लक्षण ५--ज्षानों का स्वभाव और व्यापार ६--मति-श्रुतिका विवेक ७--मतिज्ञान के भेद ८--अवग्रहादि के लक्षण और पर्याय [३] चयनिरुषण प्रास्ताविक १--नयसंख्या २--नयों के लक्षण ३-- नूतन चिन्तन \ (च) घ्ाचायं कुल्दङुल्द फी संनवशन फो देन प्रास्ताविक ` [१] प्रभेषनिरूपण १--तत्त्व, अर्थ, पदार्थ और तत्त्वाथे २--अनेकान्तवाद ই- द्रव्य का स्वरूप ४-- सत्‌ द्रव्य = सत्ता ५--द्रन्य, गुण ओर पर्यायं का सम्बन्ध २०७ २०७ २०८ २१० २१३ २१३ २१४ २१७ २१७ २१७ २१७ २१५ २१६ २२० २२० २२१ ` २२१ २२३ २२६ १२९१ २२७ २२७ २२८ २३१ २३१ २३३ २३३ २३४ २३४ २३ब्‌ २३६




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