दोहावली | Dohavali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(187). ' जाने को जान । तुलसी यह सुनि समझे हिय आ- निषे धतुबान ॥ ६८ ॥ करमठ कठमलिया कहे जानी नान विहीन । तरसं निप विहायगो सम इभरि , दमन्‌ ॥ ६९ ॥ নানক एव के सये सपक भये न कोई । तुलसी- शंम शपारूते भरी होय सो हीय ॥ -१०० ॥ शंकर प्रिय ममद्रोही शिव दोही मम दास। ` ते नर करहि कल्पभरि घोर नरक मई बास ॥ १०९॥ बिलग २ सुख संग इख जियन परण सोह रीति। ' হই ते रखे राभके गये ते उचित अनीति ॥ १०२ ॥ । . जाय कवं करतृति.विनरु जाय योग बितुक्षम । ठु लसी जाई उपाय सवे. बिना शमपद्‌ प्रम ॥ १०१॥ गर्भगतु सवयोगद्ी योग जाय बिनुक्षेम । तयों तृ- “ लसी के माव गतु रामपेम विसु नेम ॥ १०९ ॥ इम :: निकारं सवरी है सवहीको नीक । जो यह सवी है , सदा तो नीको तुलसीक ॥ १०५॥ तुलसी ग़म जो आदंगे खोये खरे खरो३-।.दीपक' काजर शिं




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