सविता अथवा शेष का परिचय | Kavita Athwa Shaish Ka Parichay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.100 GB
कुल पष्ठ :
336
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५
बिटिया । माँ दुर्गा तुम्हें घन और दूध-पूत से सदा सुखी रखेंगी। इतना कह
कर बूढ़ा गुमाइता जोर से रोने लगा ।
सुनकर तारक की आँखें भी सजल हो उठीं ।
राखाल कहने लगा-+मेरे पिता का श्राद्ध और महामाया दुर्गा की पूजा
दोनों ही काम निवट गये । तेरस के दिन यात्रा करके, चिरकाल के लिए देश
छोड़कर, उनके स्वामी के घर में आकर मैंने आश्रय लिया । वह दूसरी पत्नी
थीं, इसीसे सभी उन्हें नई-माँ कहते थे। मैं भी नई-माँ कहने लगा। सास-
समर नहीं हैं; लेकिन सगे-सम्दन्धी वोष्य-परिजन बहुत हैं।आथिक दशा
ग्रच्छी है, धनी भी कहें तो कह सकते हैं । इस घर की वह केवल ग्रहिणी ही
नहीं, पूरी स्वामिनी हैं--वह जो करती हैं वही होता है। स्वामी की अवस्था
अधिक है, बाल सफेद हो चुके है । लेकिन उनका स्वभाव बच्चों का-सा सरल
है । ऐसे मीठे स्वभाव का मनुष्य मैंने और कभी नहीं देख।। देखते ही अपने
लड़के जैसे प्यार और आदर से मुझे ग्रहण किया । देश में उनके वाग-वगीचा,
घरती और वेती-वारी भी थी, दो-एक छोटे-मोटे तालुके भीये प्रौर कलकत्ते
में कोई एक व्यापार भी चल रहा था। लेकिन वह अधिकांश समय घर में
रहते थे और तब लगभग ्राधा दिन उनका पूजा-घर में ब्यतीत होता था
ठाकुर की सेवा में, पूजा-9ह्लिक में, जप-तप में ।
मै स्कूल में भर्ती हुआ । किताब-कापी-पेन्सिल-कागज-कलम आया; कुर्ता-
घोती, जूता-मौजे कई जोड़े श्राये । घर में पढ़ाने के लिए मास्टर रखा गया।
जैसे मे! इसी घर का लड़का हूँ । यह बात सब जैसे भूल गये कि निराश्रय
जानकर नई-माँ मुझे प्रपने साथ ले आई हैं ।--तारक, इस जीवन मेवे सुल
के दिन अ्रव फिर नहीं लौटेंगे । श्राज भी मैं चुपचाप लेटा-लेटा वही सब वातें
सोचा करता हूँ ।
इतना कहकर राखाल चुप हो गया और बहुत देर तक न जाने कसा
अ्रनमना-सा हो रहा ।
तारक ने कहा--राखाल, न जाने क्यों मेरी हृदय घड़क रहा है।
अच्छा, उसके पदचात् ?
राखाल ने कहा--उसके पश्चात् इसी प्रकार बहुत दिन बोत गये । स्कूल
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