प्रयाक्षित समुच्चय | Prayakshit Samuchya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पति पेबापि ४1२ । १३
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ना ७०५७-०.
उह श्ानुप्ार पधि पतितेगाङा कणन करते हैं।- « ,
निमित्ादनिमित्ाच भरतिसेवा हिधा मता ।
कारणाद् पोडशोदिश अष्टभगास्तयेतरे ॥१७॥
थ-निमिचते श्रर प्रनिपिरेत पतिते হী বকে
पानी ग । उनमें भो कारणस सोजहं सरको रह गई ६1
दसी तर शङारणमे भारं मग शेते हैं । मावार्थ--उपसर्ग
ब्पाधि आदि निमित्तोोकों पाशुर दोषोंका सेबन करना भीर
इस निपित्तकि दिना दोपोंका सरन करना इस तरह प्तिसेशके
दो भेद है। उनमें सी भत्येकके अर्थात निषित्त पतिसेवाऊे
सोसह भीर अभिशित प्रतिसेदाडे भाठ भेद होते हैं ।
सागंग-शारणऊकूत प्रतिसेदाक सोम मंग श्रीर् प्रसारण-
कृत मनिसेशके आठ मग होते हैं ॥ १७ ॥
संहेत॒ुकः सकृत्कारी सानुवीची प्रयत्तवाद् ।
तहिपक्षा द्विकाः सति पोडशाऽन्योऽन्यताडिताः॥
अर्थ-सहतुक--उपसर्गादि निमिचोंकों पा कर दोपोको
सेवन करने दाना १ सह्ठकारी--मिप्तका एक वार दोप सेवन
करना समाव दे साटुवीयी--श्रसुरीयी नाप श्रनुङमता
का है जो झमुकूलताझुर सहित १ दई सातुगषोह प्रद
विवारपूर्वक आगपानुसार घोलने बाला ३ श्रीर् भरपतनयान्-
१॥ चिः १षएपि वाट ~
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