मुहिम | Muhim

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुहिम / 17 बाबू को साहब ने नया चाक्‌ लेकर दिया है। वाबू सुनसान रास्ते पर भरी रात में अकेले लौटते हैं और चावी साथ लाते हैं, इसीलिए । पर वाबू ने अभी तक नया चाक्‌ ले जाता शुरू नहीं किया है। वे पुराना चाकू ही अपने साथ रखते हैं, नया चाक्‌ उन्होंने वक्‍स में रख दिया है) वह आदिस्ता से खाट से उतरा । वाब वेहोल सो रहे थे ओर मां भी । उसके इतनी जोर से चीख पडने पर भी कोई नहीं जागा था । अखं अवे तक अँधेरे की आदी हो गयी थीं। वह संभल-संभल कर आगे सरका और অনজ নাউ कोने में गुम हो गया) वापसी पर उसके हाथ में तेज चाकू चमक रहा था। अव ठीक है, उसने सोचा-- अगर जो कभी भी पुलिस ने उसे पकड़ा तो वह पेट्‌ में चाकू उतार देगा। उसने आश्वस्ति की मुद्रा में गरदन हिलायी और चाक्‌ को कमीज़ के नीचे वाली वनियान की बड़ी जैब में रखकर वादू की वग्रल में आकर लेट गया। चह दूर से उन्हें देख रहा था । . वे अपने फूलों वाले वड़े-से बगीचे में छोटी-छोटी खूबसूरत-सी साइ- किलें चला रहे थे | कुछ ही देर पहले उनकी माँ कार में वैठकर रोज़ की तरह चली गयी थी। साहव तो पहले ही नहीं थे । वे रात को लौटते थे; इतनी बड़ी कोठरी में सिफ़ वही दो वच्चे थे । दूर कोठी के दरवाज़े पर चौकीदार बैठा बीड़ी फूँक रहा था। इन बच्चों को पुलिस से डर नहीं लगता, उसने सोचा --कैसे मजे में साइकिलें चला रहे हैं ! फिर तत्काल - ही उसे सपने की याद आयी और उसने सोचा--ये साले काहे को डरेंगे ? पृलिस तो इनका ही कहना मानती ह 1 बह थोड़ा और नज़दीक जाकर उन्हें देखने लगा । क्या इनसे एक फूल माँग कर देखे ? उसने सोचा, क्या पता दे ही दें? जब उसने देखा कि लड़कों का ध्यान उसकी तरफ़ नहीं है तो वह फूलों वाले वगीचे के एकदम पास चला गया और उन्हें देखने लगा। अचानक उसके चेहरे पर खुशी दौड़ने लगी। साइकिल तो वह भी चला सकता है---उसने सोचा--पर वाबू की साइकिल तो बहुत बड़ी है,




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