भारत की हिन्दी नाट्य संस्थाएं एवं नाट्य शालाए | Bharat Ki Hindi Natya Sansthayan Aur Natya Shalayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विश्वनाथ शर्मा - Vishwanath Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रत की हिन्दी नादूय सस्थाएं एव नादव शासाएं ] 1३
पय ९ दर्शकों में मालवीयजो इस उक्ति यो सहन न वर सके प्रोर उसी सोने पर
ड्राप इलवा दिया गया । के
গ্যন্াধ [ঘর पूजन सहांय वे वचनानुसार श्री रामलीला नाटक मण्डली का
उत्पत्ति कान है १८६३ গীত সঘপ भ्रभिनोत नाटव' हैं रामायण” तथा सत्य हरिए-
चादर । फ थी शृष्णदाय नें इसकी! उत्पत्तिकाल सत् १८६८ भोर 'सोय स्वयवर” को
प्रथम पमिनोप्त नाटक कहा है । @ इस मत मतान्तर फी धोर ध्यान देने सेधनुभान
लगाया जा सकता है सि “रमायणः' भौर स्य हसदवद्द्' ही भारमिक नादय कृतिया
हैं। सम् श्८६३ से १८६८ तक इस प्ररार के नाटयों द्वारा जनता में चारित नाव्की का
प्रदर्शन बर उस काल में व्यात पारसी रगमच ये फ्त स्वरूप फंते इन दुस्परिणा्मों वो
मिनि फा उपक्रम किया गया 1 इस प्रकार ५-६ वर्ष वर्षों मे सरतारी शभत्याचारों का
भी भराधिवय देखकर इनमे जन जागृति का उद्द श्य प्रवल हो उठा जिसके परिणाम स्वरूप
न १८६८ में भाषद शुक्ल के द्वारा 'सीय स्वववर” पौर १६१६ मे 'महाभारत पूर्वो्द
टवं लिखे गए । वस्तुत, श्री रामलीला नाटब' मण्डली का जन्म प्रयाग में सन् १६६३
| हुए! । रद प्रथम साटबा स्ीय सबषदर की प्रपेक्षा “रामापए शो मानना সিক্ত
वृक्ति युक्त है ।
कालान्तरे इस सस्या मे प्ररमोडा के सदमोकान्त भटर, मालवीयजी देः सुपु
रमकिन्त मालवीय, “म्युदय के सम्पादक श्री ृच्कान्त मालय, वेणो प्रसाद गुप्त
प्रोर देवेन्ट बनर्जी समिलित हुए । १६०७ तक इस सस्या ने मिल जल कर् कां किया
किन्तु मादषीयजी के অথচ ই লতি ক कु मतभेद हो जने कै षार यह् मंडली
হি শী एप्णदाष . हमारी नाद्य परम्परा, पू ६२६
भीरो कु ० चर परकार्गासिह् : दिम्दो नार्य सहित्य भोर रगमन को मौमाता,
पृ. ३४५२-५३
क प्रो एृष्णदास * हमारी नाट्य परम्परा, पृ, ६२५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...