महान मनीषी | Mahan Maneeshi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जगन्नाथप्रसाद मिश्र - Jagannath Prasad Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)+ হেড क क ~ = श রঃ শি
कमफसिये 4 ₹
बढ़े हुए है। उन्होंने दरिद्रों के लिये केधल भोजन का ही प्रबन्ध नहीं
किया बल्कि युवकों एवं बृद्धों के लिए पृथक भोजन की भी व्यवस्था
की, उन्होने वस्तुओं का मुल्य निर्धारित कर दिया और व्यापार के
विकास के लिये राजस्व का उपयोग किया। यातायात के साधनों
मे उन्नति हुई, सड़कों भौर पुलों की मरम्मत की गयी। उन्होंने पहाडो
में जो छुठेरे भरे हुए थे उनका उच्छेद कर दिया । सामन्तो के
प्रधिकार नियन्त्रित किये गये, साधारण जनों को अत्याचार से मुक्ति
मिली और न्याथ की ६ृष्टि में सब ममुप्य समान समझे गये ।
कनपूसियस कौ यह् शासन नीति यद्यपि जनता मे शत्यन्त लोक-
प्रिय सिद्ध हुई, किन्तु सज्य में कायमी स्वार्थ वाला जो प्रतिपक्षिशाली
धिक वगं या वह् उनके बहुत चिढ गया । कनपरत्तियस कै शासन
सुधार में जो लोग विष्न डालने वाले थे वे चाहे कितने ही महान
एव प्रभावशाली क्ये न हों कनपूसियस उन पर आधात करने मे जरा
भी श्रागा-पीछा नही करते थे ।
कनफूसियस उच्च प्रशासकीय पद पर केवल तीन वर्षो तक रहे!
इसके बाद तेरह साल तक वे एक राज्य से दूसरे राज्य में नियश
भाव से घूमते रहे । उन्हें ग्राशा थी कि कोई राजा ऐसा प्रिल जायगा
जो अपने राज्य का शासन-भार उनके ऊपर सौंपकर उन्हें यह ग्रधिकार
दे देगा कि उस राज्य को वे एक आदर्श राज्य में परिवर्तित कर डालें ।
किन्तु उनकी यह राशा पणं नही हई ।
बहुत से स्थानों में उन्हें राजकीय सम्मान एवं राजोचित भोज
मिला, किन्तु इस प्रलोभनों में वे प्रासक्त नहीं हुए । एक शासक ने उनके
भरण-पोषण के लिए उन्हें एक नगर का राजस्व देना चाहा किन्तु
उन्होंने विनम्र भाव से यहु कहकर अस्वीकार कर दिया कि एक
श्रेष्ठ व्यक्ति अपनी सेवाग्रों के लिये ही पुरस्कार लेना चाहेगा। मैं
शासक को परामर्या दिया, उसका पालन उन्होंने नहीं किया और मुझे
वे वृत्ति देना चाहते हैं । उन्होंने मुभे समभने में भूल की है। खाने के
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