समाज और संस्कृति | Samaj Aur Sanskriti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
85
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९५
वह रक्षा के लिए माता पर श्राश्रित रहता है । उसकी यही प्राधितता उसके समाजी-
करर का आधार बनती है । अपनी श्रायु के दूसरे वर्ष में वह भाषा सीखने
लगता है और दूसरों के साथ उसका सम्बन्ध बढ़ने लगता है। धीरे-धीरे वह
परिवार में कुछ कतंव्य और अधिकार प्राप्त करता है श्र तदनुसार श्रभ्यास,
दशे, सनोवृत्ति और चरित्र विकसित करता है। इसी पारिवारिक समूह में
उसका सासाजिक व्यक्तित्व बनता है। धीरे-धीरे इन बाह्य कर्मो का अन्तरी-
करण होता है जिससे व्यक्ति का मानसिक जीवन बनता है और वह बाह्य
जीवन को प्रभावित करता है । व्यक्त रूप से विचार, भाषा के विकास के साथ
चलते हुए दिखाई देते हैं और इस प्रकार मन, वचन तथा कर्म का त्रिक्
उपस्थित हो जाता है जिसमें कर्म तो बाहर से दिखाई देता है, वचन को प्रेषित
करना होता है श्रौर सन का इन दोनों से अनुमान किया जाता है ।
समाज किसी प्रकार के सम्बन्ध या समानता से बंधे हुए व्यक्तियों को
कहते हैं। समाज का आधार व्यक्तियों का पारस्परिक व्यवहार होता है
अर्थात् किसी व्यक्ति की वह प्रवृत्ति जो बिना दूसरे के पुरी न हो । माता और
सन्तति का सम्बन्ध मूलभूत सामाजिक व्यवहार है जिसकी बुनियाद पर व्यव-
हार के अ्रन्य रूप प्रतिष्ठित होते हैं । इनमें तीन रूप सामान्यतः निर्दिष्ट किये
जा सकते हैं : १. व्यक्ति का व्यक्ति से व्यवहार, २. व्यक्ति का सशरूहुसे
व्यवहार और ३. समूह का समूह् से श्रथवा उसके किसी प्रतिनिधि से
व्यवहार । |
व्यक्ति का समाज के साथ क्या सम्बन्ध है, इस विषय में महाभारत में
एक मनोरंजक प्रकरण श्राया हे । शान्ति पवं मे युधिष्ठिर हारा दंडनीति के विषय
म प्रहन किये जाने पर दंडनीति का महात्म्य बताते हुए भीष्म कहते हैँ कि...
कालो वा कारणं राज्ञोराजा वा काल कारणम्|
इति ते संशयो माऽभूद्राजा कालस्य कारणम् ॥ `
इस प्रकार भीष्म ने इस हका की उद्भावनाकीदहै कि জাল राजा का
कारण है या राजा काल का कारण और इस प्रदन पर यह निर्णय किया है
कि राजा ही काल का कारण है। काल के कृतयुग, चेता, दपर श्रौर कलि, ये चार
विभाग करके और युगों का निरूपण सामाजिक जीवन कौ मिलो श्रर्थात्
विभिन्न दशाश्रों के रूप मेँ करके यह दिखला दिया गया है कि इस प्रकरण में.
युग परिवतंन का श्रथं सामाजिक परिवतंन है भ्रौर काल का श्रथे सामाजिक
काल है । राजा का श्रर्थ भी स्पष्ट कर दिया गया है। दंड भ्र्थात् समाज के
नियन्त्रण की शक्ति जिसे प्राप्त थी, वह राजा था। क्षत्रिय शब्द भी राजा का
पर्यायवाची है क्योकि समाज पर क्षत्रिय वणं का प्रभुत्व था श्रर्थात् राजा
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