अभागा | Abhaga
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.44 MB
कुल पष्ठ :
211
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
नूर नबी अब्बासी - Noor Nabi Abbasi
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वीरेंद्र त्रिपाठी - Veerendra Tripathi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)म्रखह क्र-ऋू-कू बुर-बर एरिफी गिवली ने कवृतर की नाई गुटरगूँ किया । एक बिजली के खंगे के पास पड़े ढलवाँ पत्थर पर बच्चे पर श्राँखें गड़ाये वह बेठा था मानों बच्चे की श्रोर से किसी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा हो । बच्चा उलभन में पड़ गया एरिफी की फूहड़ भाषा वह ने समक पाया । उसने कई बार सिर हिलाया लापरवाही से श्रपनी भरें उठाई लेकिन रोटी के टुकड़े को मुह से न निकलने दिया 1 एरिफी ठहाका मार कर हँस पड़ा । यह पसंद नहीं ऊँह ? श्रबे--मच्छर कहीं के इस दाब्द मच्छर पर बच्चा पूरी तरह समभक्त गया कि उसे कुछ मिलने-मिलाने वाला नहीं है इसलिये उसने अपना मुँह प्रौर अझांखें फाड़ कर उसे देखा । वह बड़ा गड़बड़ाया-सा लग रहा था लेकिन सच तो यह है कि वह भ्रपनी रोटी चबा रहा था । एरिफी ने बड़ी फुर्ती से उसे भंकोड़ा श्रौर रोटी निकाल फेंकी फिर ब्रड़ी जिज्ञासा भरी दृष्टि से बच्चे को देखा मानो भ्रपने को यह विश्वास दिलाना चाहता है कि उसने वह रोटी मुह॒से नहीं निकाली है । पाल खाँसनें लगा । एरिफी गिबली भाप निकालते हुए रेल के इंजन की भाँति सी-सी की आवाज करने लगा । वह बच्चे को हिलाने-डुलाने लगा श्र उसने समभ्ना कि उसकी यह चाल खांसी को रोक देगी । लेकिन बच्चा तो उससे भी कहीं जोर-जोर से खाँसने लगा । एरिफा ने साँस ली । वह उलभकन में पड़ गया भ्रौर इधर-उधर लाचारी से ताकने लगा । गली सोई हुई थी । कुछ-कुछ देर में सड़क के दोनों श्रोर रोशनियां टिम-टिमा सठतीं | दूर कुछ फोसले पर ऐसा दीख पड़ता था मानों रोशनियाँ बिल्कुल सटी हुई हे--एक दूसरे से काफी नजदीक हैं । लेकिन २७
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Avinash Parmar
at 2021-11-09 08:57:26