हिंदी काव्य मंथन | Hindi Kavya Manthan
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
365
श्रेणी :
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No Information available about दुर्गाशंकर मिश्र - Durgashankar Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११
सम्मत भाषा--प्रवाहात्मकता व सुबोधता-- आवश्यकता ब परिस्थितियों के
अनरूप लचीलापन-- मुहावरों, लोकोंबितयों व कहावतों का प्रयोग---अलं-
कार योजवा--अनुप्रास, यमक, इलेप, उपमा, रूपकं, परिसंख्या प्रतीप व
अत्युक्ति--विकृत व गढ़ें हुए शब्दों का अभाव--उत्तम भाषा के सभी
आवश्यक गुण ।
5, सतसई-परम्परा और बिहारी-सतसई २२१-२२६
रोतिकाल के सर्वश्रेष्ठ एवं लोकप्रिय कवि- सहज रसीलौी ब्रजमाषाके
पीयूष वर्षी मेघ-- विहारी कौ एकमात्र रचना सतसरई- सतस काव्य-परपरा
का समुज्जवल रत्न--सतसई का अभिप्राय--सतसई शब्द का निर्माण--
सतसई साहित्य का परिचय-- हिंदी में सतसई रचना का प्रारंभ--सतसई
परंपरा का मूल स्रोत--तुलसी व रहीम का योगदान--सतसई काव्य
परम्परा का वास्तविक प्रवत्तंक--बथिहारी वा परवर्ती सतसई-साहित्य---
बिहारी सतसई का सामान्य परिचय व महत्व--बिहारो सतसई पर संस्कृत,
प्राकृत व अपश्रृंश साहित्य का प्रभाव--तुलनात्मक दृष्टि--बिहारी सतसई
का परवर्ती काव्य-साहिए्य पर प्रभाव ।
१०. पद्माकर की भाव व्यंजना २३०-२४५
कविता क्या है--कविता का प्रयोजन- काव्य में भाव का स्थान--
भाव-व्यंजना को सुदृढ़ता व सरसता--रोतिकालोन यहसस््वी कवि पद्माकर
व उनकी रचनाएं-- दरबारोी कवि पदमाकर व उनकी चाटुकारिता--
अत्युक्तिपुर्ण प्रशस्तियों का सजन--आचारयंत्व की हल्की सी झलक--रस व
अलंकारों पर लक्षण प्रथो का निर्माण कर परंपरागत कविकर्म का निर्वाह--
স্বমাং रस का विस्तत वर्णत-- कृष्ण व राधा का नायक-नायिका रूप में
चित्रण-- प्रबोधपचासा से भाव-व्यजना का नखरा हआ सूप- हद गत भाव-
नाओं को क़ुलतापुरवंक अभिव्यक्ति-- अंतस्तल ठक पाठकों को ले जाने की
सामथ्यं--गंगालहरी सें संसार की व्यथंता व सारहीनता का चित्रण---
भक्कि विषयक छंद--आत्मानुभूति की प्रधानता- देव-स्तुतियां- संयोग व
वियोग-श्यूगार का आधिक्य--सुन्दर सजीव मूति-विधान--भावमू ति विधायनोी
कत्पना--विप्रलंभ को विभिन्न मनोदशाओं का हृदयस्पर्शी चित्रण-- अभि-
अभिव्यंजन शलियाँ--मधुर कल्पना का स्पंदन-नूतन भावों को
ब्यंजना--पद्माकर की भाव-व्यंजना में दोष--ऋतु विषयक छंदों में भाव
गंभोरता का अभाव-भाव-शुन््य छंदों की अधिकता--भाव-व्यंजना में
सवंथा विरोधिनी प्रवृत्ति के दशंन--कोरा दब्दाडम्बर सात्र ही दीख पड़ ना---
भावों की अत्यधिक पुनरावत्ति-गंगालहरी में दीख पड़नेबाली भाव व
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