हिंदी काव्य मंथन | Hindi Kavya Manthan

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Hindi Kavya Manthan  by दुर्गाशंकर मिश्र - Durgashankar Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ सम्मत भाषा--प्रवाहात्मकता व सुबोधता-- आवश्यकता ब परिस्थितियों के अनरूप लचीलापन-- मुहावरों, लोकोंबितयों व कहावतों का प्रयोग---अलं- कार योजवा--अनुप्रास, यमक, इलेप, उपमा, रूपकं, परिसंख्या प्रतीप व अत्युक्ति--विकृत व गढ़ें हुए शब्दों का अभाव--उत्तम भाषा के सभी आवश्यक गुण । 5, सतसई-परम्परा और बिहारी-सतसई २२१-२२६ रोतिकाल के सर्वश्रेष्ठ एवं लोकप्रिय कवि- सहज रसीलौी ब्रजमाषाके पीयूष वर्षी मेघ-- विहारी कौ एकमात्र रचना सतसरई- सतस काव्य-परपरा का समुज्जवल रत्न--सतसई का अभिप्राय--सतसई शब्द का निर्माण-- सतसई साहित्य का परिचय-- हिंदी में सतसई रचना का प्रारंभ--सतसई परंपरा का मूल स्रोत--तुलसी व रहीम का योगदान--सतसई काव्य परम्परा का वास्तविक प्रवत्तंक--बथिहारी वा परवर्ती सतसई-साहित्य--- बिहारी सतसई का सामान्य परिचय व महत्व--बिहारो सतसई पर संस्कृत, प्राकृत व अपश्रृंश साहित्य का प्रभाव--तुलनात्मक दृष्टि--बिहारी सतसई का परवर्ती काव्य-साहिए्य पर प्रभाव । १०. पद्माकर की भाव व्यंजना २३०-२४५ कविता क्‍या है--कविता का प्रयोजन- काव्य में भाव का स्थान-- भाव-व्यंजना को सुदृढ़ता व सरसता--रोतिकालोन यहसस्‍्वी कवि पद्माकर व उनकी रचनाएं-- दरबारोी कवि पदमाकर व उनकी चाटुकारिता-- अत्युक्तिपुर्ण प्रशस्तियों का सजन--आचारयंत्व की हल्की सी झलक--रस व अलंकारों पर लक्षण प्रथो का निर्माण कर परंपरागत कविकर्म का निर्वाह-- স্বমাং रस का विस्तत वर्णत-- कृष्ण व राधा का नायक-नायिका रूप में चित्रण-- प्रबोधपचासा से भाव-व्यजना का नखरा हआ सूप- हद गत भाव- नाओं को क़ुलतापुरवंक अभिव्यक्ति-- अंतस्तल ठक पाठकों को ले जाने की सामथ्यं--गंगालहरी सें संसार की व्यथंता व सारहीनता का चित्रण--- भक्कि विषयक छंद--आत्मानुभूति की प्रधानता- देव-स्तुतियां- संयोग व वियोग-श्यूगार का आधिक्य--सुन्दर सजीव मूति-विधान--भावमू ति विधायनोी कत्पना--विप्रलंभ को विभिन्‍न मनोदशाओं का हृदयस्पर्शी चित्रण-- अभि- अभिव्यंजन शलियाँ--मधुर कल्पना का स्पंदन-नूतन भावों को ब्यंजना--पद्माकर की भाव-व्यंजना में दोष--ऋतु विषयक छंदों में भाव गंभोरता का अभाव-भाव-शुन्‍्य छंदों की अधिकता--भाव-व्यंजना में सवंथा विरोधिनी प्रवृत्ति के दशंन--कोरा दब्दाडम्बर सात्र ही दीख पड़ ना--- भावों की अत्यधिक पुनरावत्ति-गंगालहरी में दीख पड़नेबाली भाव व




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