प्रबोधसुधाकर | Prabodh Sudhakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-निन्दा
* पितृमातृबन्धुभगिनीपितृव्यजामातृमुख्यानास् ।
‡ मार्म्यानामिव युतिरनेकयोनिभरमारक्षणिका ॥४३॥
नाना योनियोंमें भ्रमण करते हुए पिता, माता, भाई, बहिन,
) पितृव्य और जामाता आदि सम्बन्धियोंका मेल मार्गमें चढनेवाले
: पथिकोंके संयोगके समान क्षणमरके डिये ही होता है |
. दैवं यावद्धिपुल॑ यावत्मचुरः परोपकारश्व ।
, तावत्सवें सुहृदो व्यत्ययतः शत्नवः सर्वे ॥४४॥
जबतक दैव अनुकूल रद्दता है और घन-धान्य तथा परोप-
कारकी अधिकता होती है तभीतक सब. समे-सम्बन्धी होते हैं,
उनकी ग्रतिकूछता हुई कि वे उल्टे अपने शब्रु हो जाते है।
अश्चन्ति चेदनुदिनं बन्दिन इव वर्णयन्ति सन्तृताः।
तच्ेदृदित्रदिनान्तरममिनिन्द्न्तः प्रकुप्यन्ति ॥४५
जबतक नित्य-प्रति खानेको नाना ग्रकारके पदार्थ मिलते रहते
हैं, तबतक वे तृप्त द्वोकर वन्दी जनकी माँति बड़ाई करते रहते हैं,
उनमें यदि दो-तीन दिनका भी अन्तर पड़ जाय तो वे प्रशंसा
करनेवाले ही कुपित होकर कुवाक्य कहने ठगते हैं ।
जठरनिमित्तं समुपार्जयितुं प्रवर्तते
दुर्मर समुपार्जयितुं भवतत चित्तम् ।
लक्षावधि बहूविततं तथाप्यकम्यं कपदिंकामा्नम् ।४६।
१६३. .
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