प्रबोधसुधाकर | Prabodh Sudhakar

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Prabodh Sudhakar  by अनन्त पण्डित - Anant Pandit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-निन्दा * पितृमातृबन्धुभगिनीपितृव्यजामातृमुख्यानास्‌ । ‡ मार्म्यानामिव युतिरनेकयोनिभरमारक्षणिका ॥४३॥ नाना योनियोंमें भ्रमण करते हुए पिता, माता, भाई, बहिन, ) पितृव्य और जामाता आदि सम्बन्धियोंका मेल मार्गमें चढनेवाले : पथिकोंके संयोगके समान क्षणमरके डिये ही होता है | . दैवं यावद्धिपुल॑ यावत्मचुरः परोपकारश्व । , तावत्सवें सुहृदो व्यत्ययतः शत्नवः सर्वे ॥४४॥ जबतक दैव अनुकूल रद्दता है और घन-धान्य तथा परोप- कारकी अधिकता होती है तभीतक सब. समे-सम्बन्धी होते हैं, उनकी ग्रतिकूछता हुई कि वे उल्टे अपने शब्रु हो जाते है। अश्चन्ति चेदनुदिनं बन्दिन इव वर्णयन्ति सन्तृताः। तच्ेदृदित्रदिनान्तरममिनिन्द्न्तः प्रकुप्यन्ति ॥४५ जबतक नित्य-प्रति खानेको नाना ग्रकारके पदार्थ मिलते रहते हैं, तबतक वे तृप्त द्वोकर वन्दी जनकी माँति बड़ाई करते रहते हैं, उनमें यदि दो-तीन दिनका भी अन्तर पड़ जाय तो वे प्रशंसा करनेवाले ही कुपित होकर कुवाक्य कहने ठगते हैं । जठरनिमित्तं समुपार्जयितुं प्रवर्तते दुर्मर समुपार्जयितुं भवतत चित्तम्‌ । लक्षावधि बहूविततं तथाप्यकम्यं कपदिंकामा्नम्‌ ।४६। १६३. .




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