तुलसी ग्रन्थावली भाग १ खंड २ | Tulsi Granthavali Bhag 1 Khand 2

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Tulsi Granthavali Bhag 1 Khand 2 by माताप्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका : प्रतियों की वहिरज्ञ परीक्षा ७ इसमें अंत के यह पत्र नहीं हे : पत्रा १०७-१०९। यह भी लंका्कांड सात्र की प्रति है। (८, उ०) सं० १६५९३ की प्रति--थह्‌ प्रति भी मुम उपयुक्त धनय জীব সাম हई थी। इसका आकार ९.६ १४ है। प्रति দু तथा सुलिखित है और पुस्तक के रूप में अपनी चौडाई में लिखी ह है । यह केवल उत्तरकांड की प्रति है | (९, बा०) सं० १६४ की प्रति- यह भरति कासगंज (जिला एटा) के पं० भद्गदत्त शर्मो बैद्य के पास है। इसका आकार ११४ ? ६ है । पहला पत्रा तथा बीच के कुछ पत्रे खंडित हे, किन्तु अंतिम सुरक्षित है । लिखावट अच्छी नहीं है ओर प्रति की लम्बाई में हुई है। यह केवल बालकांड की प्रति है। (९, अर०) स्ं० १६४३ की प्रति--यह प्रति भी उपयु क्त मद्रदत्त जी के पास है। आकार लगभग १२» दर है। इस प्रति के भी कई पत्रे खंडित हैं, जिनमें पहला भी है। अंतिम पत्रा अवश्य सुरक्षित है । लिखावट साधारण है और प्रति की लम्बाई में हुई है। यह केवल अरस्यर्कांड की प्रति है । (९, सुं)) सं० १६७२ की प्रति--यह दुलदी (जिला लखीमपुर) के एक पंडित जी के पास है। आकार अनुमानतः ५ » ४१ है। प्रति पूर्ण है | लिखावट अच्छी है और प्रति को लम्बाई में हुई है। यह केवल सदर: कांड की प्रति है । प्रतियों की बहिरज्ञ परीक्षा (१) सं० १७२१ को प्रति-इंस | ति मे पुष्पिका केवल उत्तरकांड को (~ ® ६. समाप्ति पर दी हुई है और वह इस प्रकार है :-- संवत्‌ १७२१ वर्ष जेठ बदी दशमीं । तिथि के साथ वार या अन्य कोई ऐसा विवरण नहीं है जिससे गणना द्वारा तिथि की शुद्धता जानी जा सके | अन्यथा प्रति प्राचीन ज्ञात होती है ओर इतनी पुरानी हो सकती है।




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