हमारी सभ्यता और विज्ञान-कला | Hamari Sabhyata Aur Vigyan Kala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
462 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पर रहते ये । मैक्समूलर ने इसका वद् प्रचार छ्िया । श्रव यदह तय
करना रद्द गया कि बह स्थान कौन-सा दै । बहुतों की राय बनी कि यह
स्यान मध्य एशिया था । कुछ लोगों ने पूर्वी रूस को निश्चित किया ।
कुछ फिनलेंड के पठ मे रहे । मध्य यूरोप में वतंमान वोदेमिया की तरफ
भी कुछ एक दिद्वानों का ध्यान कुका । बाल गंगाघर तिलक की राय थी
कि यष्ट स्थान उत्तरी ध्रूव के पास था । पार्जोटर का इन सबसे विलज्षण
विचार यद था कि आर्य लोग दिमाल्षय में स्थित इल्ना नामक स्थान से
यहां श्राकर भारत से परिचम की श्रोर गये ।
जेसा कि पहले लिखा जा चुका है, इस विचार-घारा का कि आय
लोग बाहर से भारत में आये, एक पद्ली बद्ध धारणा कारण द्दै।
इन ल्लोगों ने सिकन्दर, हुण, शक, मुसतल्लमान, अंगरेज आदि के आगमन
देखे सुने थे । हससे यद्दध विश्वास हो गया कि यहां वाहर से भाए लोग
दी रद्दते हैं। सिकनदर आदि के आने से यद्द सिर नहीं दो सकता कि
दम लोग भी बाददर से आए हैं। नदी में दबकर मरने वाले आदमी को
यह निश्चय कर लेना कि संसार के सभी मनुप्य छूयकर मरते दें, ठीक
नहीं । देशों की परिस्थितियां बदल्वती रहती हैं ।
यदि टम लोग वादर से आते तो हमारे वेदों में उस आवदि-देश का
अआ वणेन मिज्ञता । उसकी कोद याद् छषिर्यो को होती । वहां की जल-
यायुकी वे भिन्नता का भ्रजुभव करते । हमरे वेदों मेँ यदा ष्टी नदिर्यो, यदी
के पहाड़ों, खेतों, अन्न, पशु-पक्ती आदि का वयंन है । षि-प्रधान
सम्यता वेदों में पाई जाती है । जिस प्रकार के देवताओं घ यज्ञ का विघान
बेदों में है वद्द ज्यों-का-स्यों भारत में पाया जाता है। वेदों के वाद् बना
भारतीय साहिस्य वेदों से झओत-प्रोत है । वेद सवंमान्य हैं । आज भी हम
ख्वोगों के देनिक आचार में वेदिक सभ्यता छिपी पड़ी दहै। कुछ शब्दों के
मिलने-मात्र से यद्द सिद्ध कर लेना कि भारतीय बाहर से आए थे,
डचित नहीं । सैकढ़ों इम्नत्षिश के शब्द, जैसे टिकिट, स्टेशन, कार्ड, टेल्ली-
फोन, जज, आफिस आदि हमारी रग-रग में प्रविष्ट दो थुके हैं । तो क्या
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