संस्कृत के महाकवि और काव्य | Sanskrit Ke Mahakavi Aur Kavya

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Sanskrit Ke Mahakavi Aur Kavya  by रामजी उपाध्याय - Ramji Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ द, विदवनाथ ने महाकाव्यके लिएश्वुंगार, वीर ओर चान्तमेसे किसी एकको अंगी और दोष रसों को अंग*रूप में स्वीकार किया है। शलौ भामह के अनु्तार महाकान्यमे शाब्द जीर अयं का सथोजन अध्राम्य अर्थात्‌ उदात्त भौर असाधारण होना चाहिए। भाषा अलंकारमयी होनी चाहिए । आख्यान महाकाव्य के दो अंग होते है--आश्यान और वर्शांत । इनमें से आख्याव का अतिशय विस्तार भामह की इष्टि मे समीचीन नहीं है) छन्द महाकाव्य छन्दोबद्ध रचना होती है। दण्डी, हेमचन्द्र ओर विश्वनाथ के अनुसार प्रत्येक सगं मे एक छद आदि से प्रायः अन्त तक रहता है, केवल अन्त के कुछ श्लोक भिन्न छुन्द में रहते है। विश्वनाथ ने अपवाद-स्वरूप कुछ सर्गो मे विविध प्रकार के छत्दो के प्रयोग का उल्लेख किया है | वणेन संवंप्रथम दण्डी ল महाकान्यं म वरानो का समावेश करतें का उल्लेख किया है । वण्यं विषयों कौ सूची शनैः दनैः बढ़ती गई । दण्डो के अनुसार नगर, सागर, पव॑त, ऋतु, पूर्योदय, चन्द्रोदय, वन-विहार, जल-क्रोडा, पान, रति- विला, विथोग, विवाहः पुत्रोरखत्ति, मन्त्र, दूत, प्रयाण, युद्ध तथा नायक का अभ्युदय है । अन्तिम पाँच विषयों का आकलन भागह ने पाँच सन्धियों की हृष्टि से किया है। रुद्रट ने आख्यान और वर्णानों का यथायोग ग्रुम्फत करने की योजना इस प्रकार प्रस्तुत की हैः-- “नायक के नगर के वर्णन के पश्चात्‌ उसके बंश का परिचय देना चाहिए । फिर नायक को राष्ट्र के शासन-कार्य मे संलग्न दिखाना चाहिए । इसी बीच नायक को किसी दूत से प्रतिनायक की कायंपद्धति का वणन सुन कर क्षोभहो जाता है। वह मंत्रियों की सभा मे परामर्श करके प्रतिनायक के पास दूत भेजता है अथवा उसके विरुद्ध आक्रमण कर देता है । प्रयाण-क्रम मे नागरिको के क्षोम, जनपद, पव॑त, भील', मरुस्थल,सागर, द्वीप, भुभाग, स्कन्धावार, युवको की क्रीड़ाओं,सुर्यास्त, चन्द्रोदय,रात्रि, নন্দী की गोष्ठी, संगीत, पान और प्रसाधन के वर्शानो का समावेश होना चाहिए । इन वशातों के परचात्‌ प्रतिनायक को नगर पर आक्रमण कर देना चाहिए । नवयुवक योद्धा अपनी प्रियतमाओ से मिलकर भावी युद्ध में भाग लेने का भयावह समाचार देंगे । अन्त में युद्ध का होना और नायक की विजय का वर्गांत होना चाहिए ।




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