नवभारत | Navbharat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
450
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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बृद्धिमान और विकासमान आवश्यकता के लिए--योग्यतम ( 11166५६ )
कौन ?--शेर और चींठी की ठुलना और निष्कर्प--सहयोग ही सृष्टि की
आधारात्मक शक्ति है--जीवन सघर्ष ओर अन््तह्वन्द्र--प्रकृति में दृश्यगत
वेषम्य का अर्थ--क्लयुग और कृत्रिम सघर्ष--सामन्त, राजा और प्रजा,
शासक श्रौर शासित, स्वामी और दास--समाब की स्वयम्भू नियामक शक्ति
में हस्तक्षेय--अधिकार और क्तेंव्य, वर्णगत--बगैती के अनुचित रूप से
सामाजिक वेषम्धथ की सष्टि--सामाजिक समीकरण की प्राकृतिक प्रेरणा---
भगवान कष्ण भगवान बुद्ध, हजरत ईसा, हजरत मुहम्मद, महात्मा गाधी---
हयोग और समाज-- ३७-४६, १३६-१४८
(ये ) श्रम और कार्ये--
(१)
वम्तुस्थिति--झा्यों का उद्देश्य और अवकाश की आवश्यक्ता--क्लमय ओर
चर्खात्मक प्रम, वुल्लनात्मक अध्ययन-- श्रम और सम्जीवन--कार्य श्रौर श्रम
की सुद्ध तम प्रणारली-- ४७-५२, १४८-१४३
(२)
श्रम में न्त्री-पुरुप के स्वमाव-भेढ की आधारात्मक आवश्यक्ता--ल्जी और
पुरुष को एक दूसरे के कार्य में दक्ष होना चाहिये--गाधी जी का मत--
कायो प्र एकाधिकार के कारण वर्गों की घातक सष्टि-- लियो पर पुरुपो की
हुकुमत के अत की गाधीवार्दी योजना--कायो की सर्वन्यापक्ता-चर्खा और
क्ताई$--चर्खा और गोपालन--- ५२-५६, १५२३-५
(३)
सामूप्कि सट्योग , सामाजिक श्रम--कलमय उद्योग, श्रौर सामूटिक
अ्रम-फल की राष्ट्रीय ठुला--सामूहिक श्रम-फल का प्रति व्यक्ति दीर्घकालीन
परिमाण योग--श्रम-फल का माप-दर्ड ओर सामूहिक परिसाण--पस्यों
की पारिमाणिक उपज --केन्द्रित ओर विकेन्द्रि--- ५७-६०, १५४८-१६२
(४)
भारतीयं दर्ण व्यवस्था का व्यापक प्रभाव--चातुर्व्य विधान श्रम
विभाग प्रधान--ऊँच-नीच की भावना ओर सामाजिक वैपम्य--गाधी
जी की द४ट--व्यक्तियों की समानता और असमानता--वर्ण विधान की
मूल प्रेग्ता--बर्ण विधान और सामाजिक व्यवस्था--इर्ण विधान और
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