नवभारत | Navbharat

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Navbharat by रामकृष्ण - Ramkrishn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ) बृद्धिमान और विकासमान आवश्यकता के लिए--योग्यतम ( 11166५६ ) कौन ?--शेर और चींठी की ठुलना और निष्कर्प--सहयोग ही सृष्टि की आधारात्मक शक्ति है--जीवन सघर्ष ओर अन्‍्तह्वन्द्र--प्रकृति में दृश्यगत वेषम्य का अर्थ--क्लयुग और कृत्रिम सघर्ष--सामन्त, राजा और प्रजा, शासक श्रौर शासित, स्वामी और दास--समाब की स्वयम्भू नियामक शक्ति में हस्तक्षेय--अधिकार और क्तेंव्य, वर्णगत--बगैती के अनुचित रूप से सामाजिक वेषम्धथ की सष्टि--सामाजिक समीकरण की प्राकृतिक प्रेरणा--- भगवान कष्ण भगवान बुद्ध, हजरत ईसा, हजरत मुहम्मद, महात्मा गाधी--- हयोग और समाज-- ३७-४६, १३६-१४८ (ये ) श्रम और कार्ये-- (१) वम्तुस्थिति--झा्यों का उद्देश्य और अवकाश की आवश्यक्ता--क्लमय ओर चर्खात्मक प्रम, वुल्लनात्मक अध्ययन-- श्रम और सम्जीवन--कार्य श्रौर श्रम की सुद्ध तम प्रणारली-- ४७-५२, १४८-१४३ (२) श्रम में न्त्री-पुरुप के स्वमाव-भेढ की आधारात्मक आवश्यक्ता--ल्जी और पुरुष को एक दूसरे के कार्य में दक्ष होना चाहिये--गाधी जी का मत-- कायो प्र एकाधिकार के कारण वर्गों की घातक सष्टि-- लियो पर पुरुपो की हुकुमत के अत की गाधीवार्दी योजना--कायो की सर्वन्यापक्ता-चर्खा और क्ताई$--चर्खा और गोपालन--- ५२-५६, १५२३-५ (३) सामूप्कि सट्योग , सामाजिक श्रम--कलमय उद्योग, श्रौर सामूटिक अ्रम-फल की राष्ट्रीय ठुला--सामूहिक श्रम-फल का प्रति व्यक्ति दीर्घकालीन परिमाण योग--श्रम-फल का माप-दर्ड ओर सामूहिक परिसाण--पस्यों की पारिमाणिक उपज --केन्द्रित ओर विकेन्द्रि--- ५७-६०, १५४८-१६२ (४) भारतीयं दर्ण व्यवस्था का व्यापक प्रभाव--चातुर्व्य विधान श्रम विभाग प्रधान--ऊँच-नीच की भावना ओर सामाजिक वैपम्य--गाधी जी की द४ट--व्यक्तियों की समानता और असमानता--वर्ण विधान की मूल प्रेग्ता--बर्ण विधान और सामाजिक व्यवस्था--इर्ण विधान और




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