हिंदी और उसके आचार्य | Hindi Or Uske Acharya

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केदार नाथ भट्ट - Kedar Nath Bhatt

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रमेश कुमार शर्मा - Ramesh Kumar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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7 भक्ति-काल ६ धमे मे उसका स्वरूप ङच् नदीं है । वह केवल एक अनजान सातवें आसमान का “हाजिर-नाजिर” मात्र है। उसके गुणों ' का वशेन, उसकी मूर्तिं कौ स्थापना आदि युसलमानी धमे में स्थान नदीं पाती । इस अफार खुदा एक अनजान-सा हे । हिन्दू धर्म की विशेषता স্ব है कि उसमे सव प्रकार ॐ मतो को स्थान है । ५ हमारे यहाँ भी जो सचुष्य भगवान्‌ को निरंजन तथा निगुण मान कर उसकी श्माराधना करना चाहे, कर सकता है। केवल ज्ञान द्वारा, चिंतन द्वारा, अपने मन को शुद्ध करके, मनुष्य विना किसी भी बाहरी पूजा-पाठ के भगवान्‌ को पा सकता है । । इस प्रकार से हिन्द धमे मे भी इस बात को पाकर श्रौर उसका ञुसलमानी धमे म साम्य देखकर ङ कवियों ने कविता करनी ' आरम्भ की.। उस कविता मँ उम्र केवल चिंतन तथा आत्म-शुद्धि द्वारा भगवत्‌-प्राप्ति पर जोर दिया । यही नहीं, उसमें भी केवल ज्ञान को, तक को स्थान दिया। इस सत के सबसे बड़े कवि कवीर हुए हैं। उनका चलाया हुआ कवीर-पंथ अब तक चला ताह) उनकी कवितां केवल ज्ञान द्वारा ही भगवाम्‌ की अधि बताह यई है, भूर्ति- पूजा तथा नमाज आदि दोनों का विरोध किया गया है। केवल अपनी शुद्धि और आत्म-जाग्ृति द्वारा भगवान्‌ का मिलना सम्भव बताया गया दै ! उन्होंने और उनके शिष्यों ने अपने पंथ के समर्थन में कविता की। इस अकार निगुण पंथ सें केवल ज्ञान को स्थान देकर उन्होंने ज्ञानाश्रयी निशु शाखा को चलाया । इस शाखा की भाषा खड़ी सिश्रत कधीर की भाषा ही है ।' “ ज्ञानाश्रयी शाखा के मुख्य-मुख्य- कवि थे:--संत कबीर, शुरु-




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