आदर्श - जीवन एवं मोक्ष | Adarsh Jiwan & Moksh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के हित के लिट् चेष्टा करते हुए अपनी उन्नति में संलग्न रहने का
नाम ही धार्मिकता है । धामिक जीवन ही ऐहिक मोक्ष हैं। धामि-
कता ही ष्रथ्वी प्र इश्वरीय जीवन है । अथं ओर कामतो धमं
के अधीन यन््रवत् चला करते है ।
मुक्ति दही धमे का ध्येय है । जन्म, जरा, व्याधि से नितान्त
परिमुक्ति ही घमं का ध्येय है । सुकृत दुष्कृत, पुख्य-पाप हषौमषं
सब इन्हों से विनिम॑क्ति का नाम ही धर्म है। मानव-जीवन का
अभिनवीकरण किंवा दिव्यीकरण ही धर्म का उदेश्य दहै, शौर
वैसे घमं की तीन श्रेणियाँ की जाती ह-सिद्ध-धर्म, साध्य-धम
ओर साधन-धर्म | इन तीनों की व्याख्या ठीक-ठीक करेंगे ।
सिद्ध-धर्म ----- वह जो अनादिकाल से ही संसार का धारण-
पोषण करता आया है, सिद्धि-धर्म कहलाता है | यह नित्य-सनातन
और सत्य-पुरातन है, इसमें कोई नवीनता आने की नहीं | इसका
यथावत् पालन गिने-चुने महापुरुष ही कर सकते हैं, हर कोई
नहीं कर सकता ! क्योंकि जब कभी धर्म की ग्लानि और अधर्म
का अम्युदय होता है, ये महात्मागण अवतरित होकर दोनों की
परिमितता को ठीक करते हैं। ये अलौकिक कोटि के महापुरुष बहु-
जन हिताय की भावना से भू-भार-हरण की बान लेते हैं ओर
असंख्य योनि-सम्प्रदाय के दुःखों की निवृत्ति के लिए
स्कन्धो पर अथक भार वहन करते द । ये अपने अतीत कर्मों के
अनुसार जन्म नदीं लेते, न तो माया की विमोहन-शक्तिसेद्दी
प्रभावित होते हैं, अभिप्राय यह कि अश्रद्लित होते दै ।. सत्व
रज ओर तमोशुण का प्रभाव इनसे खुदूर रहता है। सामान्य
व्यक्तियों में ऐसी बात नहीं है | वे गुणों के अनुसार अनुवर्तन
करते हैं और बद्धजीव कहलाते हैं। इनकी स्व॒तन्त्रता कुछ नहीं...
रहती । अपने प्रारब्ध अर्थात् कमे-फएलों के अनुसार ही चलने के
लिए विवश रहते हैं
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