आदर्श - जीवन एवं मोक्ष | Adarsh Jiwan & Moksh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Adarsh Jiwan & Moksh by स्वामी नारायणनन्द - Swami Narayan Nand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी नारायणनन्द - Swami Narayan Nand

Add Infomation AboutSwami Narayan Nand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
के हित के लिट्‌ चेष्टा करते हुए अपनी उन्नति में संलग्न रहने का नाम ही धार्मिकता है । धामिक जीवन ही ऐहिक मोक्ष हैं। धामि- कता ही ष्रथ्वी प्र इश्वरीय जीवन है । अथं ओर कामतो धमं के अधीन यन््रवत्‌ चला करते है । मुक्ति दही धमे का ध्येय है । जन्म, जरा, व्याधि से नितान्त परिमुक्ति ही घमं का ध्येय है । सुकृत दुष्कृत, पुख्य-पाप हषौमषं सब इन्हों से विनिम॑क्ति का नाम ही धर्म है। मानव-जीवन का अभिनवीकरण किंवा दिव्यीकरण ही धर्म का उदेश्य दहै, शौर वैसे घमं की तीन श्रेणियाँ की जाती ह-सिद्ध-धर्म, साध्य-धम ओर साधन-धर्म | इन तीनों की व्याख्या ठीक-ठीक करेंगे । सिद्ध-धर्म ----- वह जो अनादिकाल से ही संसार का धारण- पोषण करता आया है, सिद्धि-धर्म कहलाता है | यह नित्य-सनातन और सत्य-पुरातन है, इसमें कोई नवीनता आने की नहीं | इसका यथावत्‌ पालन गिने-चुने महापुरुष ही कर सकते हैं, हर कोई नहीं कर सकता ! क्योंकि जब कभी धर्म की ग्लानि और अधर्म का अम्युदय होता है, ये महात्मागण अवतरित होकर दोनों की परिमितता को ठीक करते हैं। ये अलौकिक कोटि के महापुरुष बहु- जन हिताय की भावना से भू-भार-हरण की बान लेते हैं ओर असंख्य योनि-सम्प्रदाय के दुःखों की निवृत्ति के लिए स्कन्धो पर अथक भार वहन करते द । ये अपने अतीत कर्मों के अनुसार जन्म नदीं लेते, न तो माया की विमोहन-शक्तिसेद्दी प्रभावित होते हैं, अभिप्राय यह कि अश्रद्लित होते दै ।. सत्व रज ओर तमोशुण का प्रभाव इनसे खुदूर रहता है। सामान्य व्यक्तियों में ऐसी बात नहीं है | वे गुणों के अनुसार अनुवर्तन करते हैं और बद्धजीव कहलाते हैं। इनकी स्व॒तन्त्रता कुछ नहीं... रहती । अपने प्रारब्ध अर्थात्‌ कमे-फएलों के अनुसार ही चलने के लिए विवश रहते हैं ए १७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now