भूदान दीपिका | Bhudan Deepika

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Bhudan Deepika by जयप्रकाश नारायण - Jai Prakash Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक हृदय-स्पर्शी घटना १७ सकेंगे ओर न हस जनतंत्र को कभी सफल ही बना सकेगे। भगवान्‌ सबके भीतर है एक बात और है। अमीर के हृदय मे क्या शेतान वसा होता है ? भगवान्‌ सिर्फ गरीबों के हृदय में है ओर अमीरो के हृदय में नही, ऐसी तो कोई बात नहीं है। भारतीय संसृति की यह खूबी है, भारतीय सभ्यता की यह विशेषता है कि हमारी सभ्यता मे हमने 'शेतान! की स्वतंत्र सत्ता कभी नहीं सानी। हमारे इतिहास में रावण की सत्यु होती दहे तो उसके शरीर से चिन्सय ज्योति निकलकर भगवान्‌ रामचंद्र प्रसु के हृदय मे समा जाती है । कंस की, शिशुपार की मझत्यु होती हो तो उनके शरीरो से चिन्मय ज्योति निकछकर भगवान्‌ गरोपालकृष्ण के हृदय मे समा जाती है । हम तो भगवान्‌ को स्वव्यापी, स्चसाक्षी, स्वे- शक्तिमान्‌ माननेवाले हैं। यदि अमीर के हृदय में ईश्वर को देखने की कोशिश नहीं करेगे, तो हमारे भगवान्‌ एकदेशीय वन जायेंगे, सर्वदेशीय नहीं रह जायेंगे । एक हृदय-स्पर्शी घटना सेद्धातिक वातं को छोड़ दीजिये! मेंने उनको विहार का अपना एक दृष्ांत सुनाया । उन दिनो में पेदछ घूम रही थी। फालेज के दो-चार छड़के साथ थे। एक रियासत से हम लोग गुजर হই थे। चहुत छोटी रियासत थी। साथियो ने कटा कि इस गोंव में जाना थेकार है। राजा बढ़े दुष्ट हैं, शराबी है, जुआरी हैं, इनका ह॒द्य-परिवर्तत क्या हो सकता हे ? मैंने कहा कि जनता में जनादन का दर्शन करने निकले हैं, बनेर इन के मन्दिर के बाहर से ही छोट जायें ? विनोवा का आंदोलन मजाक नहीं ऐ. मोल नहीं है। इसके पीछे गंभीर मानव-निष्ठा की




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